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तृतीय परिच्छेद
अज्ञात पद्य और गद्य लेखकों तथा जैनेतर रचनाकारों की रचनाओं
का संक्षिप्त विवरण (क) अज्ञात पद्य लेखकों की रचनाओं का विवरण
कुछ ऐसी भी रचनायें इस शताब्दि में की गई हैं जो महत्त्वपूर्ण हैं और उनकी प्रतियाँ जैन भण्डारों में सुरक्षित है परन्तु उनके लेखकों का नाम अज्ञात है। इस अध्याय में ऐसी ही कुछ रचनाओं का विवरण आगे प्रस्तुत किया जा रहा है।
'जैमल जी का गुण वर्णन' (सं० १८५३ के पश्चात् रचित यह कृति ३ ढालों में ५३ कड़ी की है।) इस कृति से ज्ञात होता है कि जैमल जी लाखिया ग्राम निवासी मोहनदास की पत्नी मोहना दे की कुक्षि से पैदा हए थे। व्यापार के सिलसिले से वे मेड़ता आये तब वहीं पर उन्हें भूधर जी का सत्संग मिला। भूधर जी की देशना से जैमल को संयम की प्रेरणा हुई। सं० १७८८ मागसर बदी २ को बाइस वर्ष की अवस्था में उन्होंने मेड़ता में दीक्षा ग्रहण की। गरु के साथ बीकानेर आये और शास्त्रों का गहन अध्ययन किया, सूत्र सिद्धान्तों को समझा। इस प्रकार अतिशय संयमपूर्वक सोलह साल तक गुरु की सन्निधि में रहकर तप एवं ज्ञान की साधना की। भूधर जी के निर्वाणोपरांत उनके पट्टधर हुए। इन्होंने जयपुर, दिल्ली, फतेहपुर, बीकानेर, मारवाड़, मेवाड़ और किशनगढ़ आदि स्थानों में विहार किया तथा उपदेश दिया और अनेक लोगों को जैन मत के प्रति श्रद्धालु बनाया। अंत में सं० १८४० में नागौर पहुँचे। सं० १८५२ में वे रोग ग्रस्त हुए। सं० १८५३ में संथारा लिया और निर्वाण प्राप्त किया। इस रचना में उनके इस परिचय के साथ उनके कुछ विशिष्ट गुणों का वर्णन किया गया है। इसका रचनाकार उनका कोई श्रद्धालु अज्ञात शिष्य है। रचना का प्रारंभ इन पंक्तियों से हुआ है
अरिहंत सिध ने साध गुरु प्रणमुं बारंबार, गुण कहूं श्री पूजना, सांभल जो नरनार। पूज भूधर जी दीपता, वैरागी भरपूर
ज्यां पुरसारा पाटवी, पूज जेमल जी जगसूर। रचना की अंतिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं।
संवत अठारे तेपने, नागोर सहर जास; पूजा मनोरथ पूरने, कीयो सरगपुरी में बास।
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