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________________ हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास प्राप्त किया। सन् १६९८ में कौलिकत्ता, सुतानटी और गोविन्दपुर नामक तीन गाँवों की जमींदारी हासिल करके कम्पनी ने वहाँ अपने कारखाने के पास फोर्टविलियम कालेज की स्थापना की। सन् १७१७ में फर्रुखशियर ने कम्पनी को पूर्ववत् समग्र भारत में व्यापार की मंजूरी दे दी, मगर बंगाल के नवाबों ने उनकी महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति में बाधा डाली; फिर भी वे कलकत्ता, बम्बई और मद्रास जैसे महत्त्वपूर्ण नगरों और बन्दरगाहों की किलेबन्दी करके अपने निश्चित लक्ष्य की तरफ बढ़ते रहे। कम्पनी राज्य के विस्तार का समय वस्तुत: सन् १७५६ से १८१८ के बीच की अवधि है। कलकत्ता की किलेबन्दी को तोड़ने का आदेश नवाब सिराजुद्दौला ने दिया और देश के कानून को मानने पर उन्हें मजबूर करने का निश्चय करके कासिम बाजार के कारखाने पर तुरंत कब्जा कर लिया। २० जून सन् १७५६ में उसने फोर्ट विलियम पर अधिकार कर लिया। अंग्रेज भागकर फुल्टा पहुंचे और नवाब के शक्तिशाली दरबारियों के साथ मिलकर प्रलोभन और उत्कोच देकर नवाब के विरूद्ध षड़यंत्र करने लगे। मीरजाफर, मानिकचंद, अमीचंद, जगतसेठ और खादिम खाँ आदि विश्वासघात में शामिल हो गये। इसी बीच मद्रास से एक शक्तिशाली सेना क्लाइव के नेतृत्व में युद्ध के लिए आ गई और २३ जून सन् १७५६ में प्लासी के मैदान में निर्णायक युद्ध हुआ। जिसमें मीरजाफर और राय दुर्लभ के विश्वासघात के कारण नवाब पराजित हो गया। मीरजाफर के बेटे मीरन ने उसे मार डाला। इस विजय ने अंग्रेजों के भारत विजय अभियान का द्वार खोल दिया। मीरजाफर ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा में मुक्त व्यापार का अधिकार तथा चौबीस परगना की जमींदारी सौंप दी। इस युद्ध से क्लाइव को बीसलाख, बाट्स को १० लाख और कर्मचारियों को कुल मिला कर ३ करोड़ रूपये मीरजाफर ने घूस दिया। ब्रिटिश इतिहासकार एडवर्ड थाम्सन और जी० टी० कैरेट ने लिखा है, “जब तक बंगाल को पूरी तरह चूस नहीं लिया गया तब तक शांति नहीं हुई।" प्रजा पर जमकर अत्याचार किया गया, मनमाना शोषण किया गया। बंगाल को बंबई और मद्रास प्रेसिडेन्सियों का खर्च भी उठाना पड़ा। जब मीरजाफर ने शैतान के आंत की भाँति बढ़ती कम्पनी की मांग पूरा करने में आनाकानी की तो कम्पनी ने सन् १७६० में उसे हटा कर उसके दामाद मीरकासिम को गद्दी पर बैठा दिया। मीरकासिम ने २९ लाख रुपये उत्कोच में दिया और वर्दबान, मिदनापुर तथा चटगाँव जिलों की जमीदारी कम्पनी को दे दी। बक्सर का युद्ध __ अंग्रेज मीरकासिम को कठपुतली समझते थे पर वह इसके लिए तैयार न था, फलतः १७६३ में लड़ाई हुई जिसमें मीरकासिम हार गया और भाग कर अवध के नवाब शुजाउद्दौला के पास गया। उसके माध्यम से मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय से साठगाँठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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