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________________ १९७ लक्ष्मीदास - लब्धिविजय संवत् पनर नव समें लुकों लहियो नाम x x x x x x संवत् सोल अकाणुवा वरस ने अवसर पाय अहमा थी वलि ऊठीया, मिथ्या मतिअ लुंकाय। हरीदास ने धरमसी त्रीजे लहु जी नाम, नाम धरावी ढूढ़िया अवलू कीधू आम। रचनाकाल- हवें अठार अकावना बरसें सूरत रहनो चोमास जी तिहा पिण--------------- अंत में इनके संसर्ग से दूर रहने की चेतावनी देता हुआ लेखक कहता है तिणें अहनी संगति नवि कीजे; जिम नवि पडिौं पासै जी। लखमीविजय कहे जो संग करस्यो, तो निज समकित जास्ये जी।३४३ लब्धि- लोका० सोमचन्द्र सूरि > गंग > कल्याण > लवजी के शिष्य थे। रचना- नेमिश्वर भगवान ना चंद्रावला (सं० १८५२ कार्तिक शुक्ल २, गुरुवार, चोरवाड़) आदि- सरसती सरस वचन द्यो मुज ने, प्रेमे करी प्रसाद; श्री नेमिश्वर ना गुण गाँवा, मुज मन ऊलट थाय। मुज मन ऊलट थाय ते कहेवा, श्रोता जन ने सॉभलवा जेहवा। मंगलकारी होजे सहु ने, सरसती वचन द्यो मुज ने। रचनाकाल- संवत अठार बावना वर्षे फागुणं सुदिनी बीजा, वार गुरु लवजी सुपसायें लब्धि वदे मन रीज। लब्धि वदे मन रीज थी वाणी, श्री नेमीश्वर जी जान बरवाणी; नर नारी जय बोलो हरखे, संवत अठार बावना बरखै। अंत- सोरठ देश तणी सीमाऔ, गाम नाम चोरवाड़ राज करे बाबी कुल बाहादुर हामद खाँ ओनाड़। हामद खाँ ओनाड प्रतापी, देग तेग जस फिरती व्यापी, गढ़ गिरनार तीर्थ छे जिहां ओ, सोरठ देश तणी सीमाओ३४४ लब्धिविजय तपा० हीरविजय सूरि, धर्मविजय, कुशलविजय और कमलविजय, लक्ष्मीविजय, केशरविजय, अमरविजय के शिष्य थे। इनकी रचना हरिबल नच्छी रास (४ उल्लास, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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