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________________ १५१ बुद्धिलावण्य - भक्तिविजय योगसार भाषा का रचनाकाल १८९५ श्रावण शुक्ल द्वितीया है। यह अध्यात्म और भक्ति पर आधारित हिन्दी पद्य वद्ध रचना है।२५८ बुद्धिलावण्य __आप देव सौभाग्य के प्रशिष्य और लावण्यरत्न के शिष्य थे। इनकी रचना 'अष्टमी स्तव' (१८३९ आसो शुक्ल ५ गुरुवार, खंभात) का आदि- पंचतीरथ प्रणमुं सदा, समरी सारद माय। अष्टमी तवन हरषे रचुं, सुगुरु चरण पसाय। रचनाकाल- संवत् अठार ओगण चालीसा वरषे, आश्विन मास उदारो रे। शुक्लपक्ष पंचमी गुरुवार, तवन रच्यूं छे त्यारे रे। पंडित देव सोभागी बुध लावणयरतन सोभागी तिणे नामे रे, बुधि लावण्य लियो सुख संपूर्ण, श्री संघ ने कोड कल्याण रे। अंत- खंभात बंदर अतीव मनोहर, जिन प्रासाद घणा सोहइ रे। बिंब संख्यानो पार न लेबूं, दरीसण करि मन मोहइ रे।२५९ इनका उल्लेख जैन गुर्जर कवियों के नवीन संस्करण में छूट गया लगता है इनको छोड़ने का कोई कारण नवीन संस्करण के संपादक जयंत कोठारी ने नहीं दिया है। बूलचंद आपने सं० १८४३ में प्रद्युमचरित' की रचना की। पर इसका विवरण उदाहरण अनुपलब्ध है।२६० भक्तिविजय आप तपा० शुभविजय > गंगविजय > नयविजय के शिष्य थे। इनकी रचना 'साधुवंदना संञ्झाय अथवा सत्पुरुष छंद' (२९ कड़ी सं० १८०३ भाद्र कृष्ण ११, रविवार) का प्रारंभ इस प्रकार हुआ है वीर जिणेसर प्रणमुं पाय, बलि गौतम गिरुआ गुरुराय, उत्तम पुरुष हुआ नर नार, करणी थी पाया भवपार। गुरु- शुभविजय वाचक मुनिराय, गंगविजय नित प्रणमुं पाय। श्री नयविजय विबुध नो सिस, भक्तिविजय प्रणमु निसिदिस। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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