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________________ हिजै०सा० की राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि सन् १८०६ में उसकी मुत्यु हुई और उसका पुत्र अकबर द्वितीय गद्दीनशीन हुआ। यह १८३७ तक अंग्रेजों के सरंक्षण में रहा, इसका उत्तराधिकारी अंतिम मुगलसम्राट 'बहादुरशाह था। इसने १८५७ के विद्रोह में अंग्रेजों का विरोध किया। फलस्वरूप विद्रोह दबाने के बाद अंग्रेजों ने इसे कैद करके रंगून भेज दिया जहाँ १८६२ ई० में इसकी मुत्यु हो गई। अपने पिता अकबर द्वितीय की तरह यह भी अच्छा शायर था। इसकी अंतिम गजल “दो गज जमीन न भी मिली..." बड़ी मार्मिक है और स्वदेश के प्रति उसके तड़प को व्यंजित करती है। मुगल साम्राज्य के पतन का कारण ___ अनेक ऐय्यास और अदूरदर्शी सम्राटों ने तथा सैयद बंधुओं ने अपनी काली करतूतों से भारतीय जनमानस में मुगलों के प्रति विरोधी भावना उत्पन्न की। साम्राज्य की नींव खोखली हो गई थी। मुगलसेना फारसी, अफगानी, उज़बेग और भारतीयों की अजनबी भीड़ थी जिनमें देशभक्ति, एकता और अनुशासन का पूर्ण अभाव था। मनसबदारों के सैनिक सम्राट् की अपेक्षा अपने सामंतों के प्रति वफादार होते थे। उत्तराधिकार के षड़यंत्रों और युद्धों ने मुगल साम्राज्य के पतन में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। आतंरिक कमजोरी का लाभ उठाकर जगह-जगह सामंत स्वतंत्र हो गये। साम्राज्य सामंतों में बटने लगा। इन्होंने अपने स्वतंत्र राज्य कायम कर लिए। नादिरशाह और अहमदशाह के आक्रमणों ने मुगलसम्राट् की कमर तोड़ दी और वह धराशायी हो गया। __भक्ति आंदोलन ने पूरे देश के हिन्दुओं में नवीन चेतना उत्पन्न की; प्रजा मुगलों की निरंकुशता के खिलाफ हो गई। महाराष्ट्र में मराठे, पंजाब में सिक्खों का प्रभाव बढ़ गया। मुगल साम्राज्य को आखिरी धक्का ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने लगाया और साम्राज्य बालू की दीवार की तरह मामूली धक्के से भहरा गया। भारतीय किसानों की स्थिति दिनप्रतिदिन बिगड़ती गई। उनमें भयंकर असंतोष व्याप्त हो गया था। भूराजस्व का बोझ बढ़ता जा रहा था। सामंतो के तबादले होते थे। वे अपने जागीर की प्रजा से अधिकाधिक धन वसूलते थे। नाना प्रकार के अत्याचार करते थे। इजारा प्रथा के कारण अधिक बोली लगाने वाले को भूराजस्व का ठेका दे दिया जाता था। वे किसानों से मनमाना राजस्व वसलते थे। प्रजा में बगावत की भावना बढ़ गई। सतनामी, जाट और सिक्खों की बगावत के पीछे यह सब प्रमुख कारण थे। जनता में राष्ट्रीय भावना का लोप हो गया था। लोग व्यक्तियों, कबीलों, जातियों और धार्मिक संप्रदायों के प्रति अधिक वफादार थे। ताकत के बल पर वाह्य एकता स्थापित करने में ऐय्यास शासक प्राय: असमर्थ थे। सामंत अपनी महत्त्वाकांक्षा के चलते सम्राट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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