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________________ १२८ हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास धर्मचंद ।। - ये तपागच्छ के विजयदया सूरि; खुशालविजय अने कल्याणचंद के शिष्य थे। इन्होंने सं० १८९६ भाद्र शुक्ल ४, दमण वंदर में 'नंदीश्वर द्वीप पूजा' की रचना की। उसका प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है प्रणमु शांति जिणंद ने चउद रयणपति जेह, कंचन वरणे सोहतो, लक्षणे लक्षित देह। सुरगिरि अष्टादस गिरि, गिरनार आबू तेम, समेतशिखर से पाँच ने वंदु बहु धरि प्रेम। X X X X X विस्तीरण जिन भुवन मां रचि नंदीश्वर द्वीप, तदनंतर प्रभु थापिने, करो अभिषेक प्रदीप। गुरुपरम्परा- तपगच्छपति श्री दयासूरिना, खुशालविजय उबझायों, तास बंधव सुगण गीतारथ, कल्याणचंद सवायो रे। विजय देवेन्द्र सूरिश्वर राज्ये, ओ अधिकार रचायो, दमण बिंदरे रहि चोमासु, ऋषभदेव सुपसायो रे। रचनाकाल- अठार से छर्नु भाद्रव मासे, संवच्छरि दिन गायो, प्रभु समुदाय कवि धर्मचंद्र, संघ सकल हरषायों रे।२१० यह रचना विविध पूजा संग्रह पृ० ३३१-३५० और विधि विधान साथे विविध पूजा संग्रह में प्रकाशित है। धर्मदास आप लोकागच्छीय मूलचंद के शिष्य थे। आपकी रचना 'अठार पाप स्थानक नी संञ्झाय १८ ढालों में सं० १८०० भाद्र कृष्ण १०, बुधवार को अहमदाबाद में पूर्ण हुई। इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ निम्नांकित है प्रथम जिणेसर पाय कमल, प्रणमी बेकर जोडि, पाप अढ़ारे वर्णवं, सूणज्यो आलस मोडि। मुज गुरु ऋषि मूलचंद जी, तास सेवक धर्मदास, ते गुरुना पय पंकज नमी, भणसुं मन उल्लास। रचनाकाल- संवत् सत अठार वरसे, भाद्रवा बदि दसमी दिने, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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