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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रांदेर) भी सांप्रदायिक पूजा पाठ की विधि पर आधारित रचनायें हैं। दोनों पूजा ग्रंथ विविध पूजा संग्रह में प्रकाशित है।
महावीर ना पंचकल्याणक ना पांच वधाना का आदि
वंदी जग जननी ब्रह्माणी, दाता अविचल वाणी रे,
कल्याणक प्रभुना गुणखाणी, थुणस्यूं ऊलट आणी रे।
यह रत्नसार भाग २ पृ० २१९ और गहूंली संग्रहनामा ग्रंथ भाग १ पृ० १८ पर प्रकाशित है।
मणिभद्र छंद एक छोटी रचना है। इसमें रचनाकाल नहीं है। चंदनों गुणावलि पर कागल अथवा चंद्रराज गुणावली लेख ३२ कड़ी की छोटी रचना है। यह जिनेन्द्र भक्ति प्रकाश पृ० ३९१ और जैन संञ्झाय माला भाग २ पृ० ७४ पर प्रकाशित हैं।) चर्चा बोल विचार अथवा तेरापंथी चर्चा अथवा नवबोध चर्चा (सं० १८७६, उदयपुर) उदयपुर के महाराणा श्री भीमसिंह के समय नाथ द्वारा में तेरापंथी भारमल जी तथा खेतसी जी के साथ ९ बोल की चर्चा हुई, उसी पर यह रचना आधारित है। आदि "श्रीमन तपागच्छीय भट्टारक श्री विजयसूरि लक्ष्मीसूरि उपगारात सं० १८७६ वर्षे पं० दीपविजय कविराज बहादुर सो गुजरात देशे बडोदरा के वासी सो भी उदयपुर महाराणा श्री भीमसिंह जी को आशीवचन देने कुं आये तब उदयपुर मध्ये तथा नाथ दुवारा मध्ये तेरैपंथी भारमल जी तथा खेतसी जी के साथ ९ बोल की चर्चा हुई तथा अनुकंपा आश्री चर्चा भई श्री तेरे पंथी को उपदेश सुनि के साधु मार्ग विवहार देखिकै पं० दीपविजय कविराज बहादुर कौं श्रद्धा तेरै पंथी की भई।"१९४ यह चर्चा तेरापंथी और तपागच्छीय मतमतातंर से संबंधित है। पहले देसाई ने दूढिया ९ बोलचर्चा तथा तेरापंथी चर्चा नामक दो कृतियों का उल्लेख किया गया था, पर वह ठीक नहीं था। दीपविजय-।।
कृष्णविजय के शिष्य थे। आपने 'चौबीसी की रचना सं० १८७० से पूर्व की। इसमें इन्होंने अपने गुरु का नाम श्रीपतिविजय लिखा है किन्तु दूसरी कृति 'नमि जिन स्तवन' में गुरु का नाम कृष्णविजय बताया है। यदि श्रीपति का अर्थ कृष्ण लिया जाय तो गुरु का नाम कृष्णविजय माना जा सकता है। चौबीसी के प्रारंभ में आदि जिन ऋषभ की वंदना है, यथा--
प्रह ऊठी बंदू रे ऋषभ जिणंद ने साहिब जी, नाभी नरेन्द्र कुल सिणगार। रा सोरठ में हे तीरथ थापीयो साहिब जी,वृषभलंछन हे चामीकर देह रा।
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