SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 573
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास दीपिका चौ०, हीरमुनि कृत उपदेश रत्नकोश चौ०, रंगविलास कृत अध्यात्म कल्पद्रुम चौ० इत्यादि । इस समय के सर्वप्रमुख साहित्यकार श्रीमद् देवचंद जी पूर्णतया अध्यात्म रसिक विद्वान् लेखक थे। उनकी प्रायः सभी रचनाओं में अध्यात्म की झलक दिखाई पड़ती है। जैसे १८वीं शती के पूर्वार्द्ध को देसाई जैसे इतिहासकार यशोविजय युग कहना पसंद करते हैं क्योंकि वे उस काल के अद्वितीय विद्वान्, समयज्ञ सुधारक, प्रखर न्यायवेत्ता, योगाचार्य और अध्यात्मी यूगपूरुष थे उसी प्रकार उत्तरार्द्ध में श्रीमद् देवचन्द का व्यक्तित्व अन्यों की अपेक्षा अधिक भास्वर और प्रखर दिखाई पड़ता है किन्तु न तो पूर्वार्द्ध को यशोविजय युग कहना समीचीन है और न उत्तरार्द्ध को देवचंद युग। निस्संदेह ये दोनों ही अपने समय के अग्रगण्य युगपुरुष और उत्तम रचनाकार हैं। ___ इस काल में ( १८वीं उत्तरार्द्ध ) प्रबंध काव्यों और चरित्र काव्यों की अपेक्षा छोटी और मुक्तक रचनायें अधिक लिखी जाने लगी थी जिनकी अभिव्यंजना शैली पर रीतिकालीन अभिव्यंजना शैली या रीति का प्रभाव देखा जा सकता है। ऐसी रचनायें प्रायः दोहा, सवैया और पद आदि में रचित है जैसे हेमराज का दोहाशतक, नवलकृत दोहा पच्चीसी, बुधजन कृत बुधजन सतसई इत्यादि । जोधराज और पार्श्वदास के सवैये मनोहारी हैं। जोधराज कृत ज्ञानसमुद्र और धर्म सरोवर इस कोटि की उत्तम कृतियाँ हैं। संत और वैष्णव भक्तों के प्रभाव से पद साहित्य को बड़ी लोकप्रियता मिली। १८वीं सदी में आगरा और जयपुर के रचनाकारों ने विपुल पद साहित्य की रचना की जिनमें जगतराम, द्यानतराय, नवल, बुधजन, उदयचंद, नयनचंद, रत्नचंद आदि का नाम उल्लेखनीय है। ___ जैन साधु और श्रावक संघ निकाल कर प्रायः तीर्थयात्रायें करते थे। श्रेष्ठी महाजन व्ययभार वहन करते थे और संघवी या संघी कहे जाते थे जो सामाजिक प्रतिष्ठा का चिह्न बन गया था इसलिए प्रायः संघ यात्रायें निकाली जाती थीं और अनेक रचनाकार इन यात्राओं का मनोरम वत्तान्त अपनी रचनाओं में प्रस्तुत करते थे जिनसे कई ऐतिहासिक, भौगोलिक और सामाजिक सूचनायें मिलती हैं। इस विषय से संबंधित विपुल साहित्य इस काल में लिखा गया जैसे महिमा सूरि कृत चैत्यपरिपाटी, विनीतकुशल कृत शत्रुजय तीर्थमाला, शील विजय कृत तीर्यमाला, सौभाग्यविजय कृत तीर्थमाला, ज्ञानविमल कृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy