SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 570
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हेमसागर ५५३ गुजराती ही थे। छन्दमालिका में पिंगलशास्त्र संबंधी १९४ पद्य है। इसकी रचनाएं सं० १७०६ में हुई थी। कई भंडारों में इसकी अनेक प्रतियाँ उपलब्ध है। इसकी भाषा शैली का नमूना देने के लिए दो पंक्तियाँ उद्धत की जा रही हैं ... अलष लष्यौ काहू न पर, सब विधि करन प्रवीन, हेम सुमति वंदित चरन, घट घट अंतर लीन । हेमसौभाग्य-- तपागच्छीय सागर शाखान्तर्गत सत्यसौभाग्य > इन्द्र सौभाग्य के शिष्य थे। इनकी प्रसिद्ध रचका राजसागर सरि निर्वाण रास है (७२ कड़ी) जो सं० १७२१ के तत्काल बाद किसी समय लिखी गई होगी क्योंकि राजसागर सूरि का स्वर्गवास सं० १७२१ में हुआ। इसी परंपरा के एक अन्य कवि तिलकसागर ने भी राजसागर सूरि निर्वाण रास सं० १७२१ के लगभग लिखा है जो जैन ऐतिहासिक गुर्जर काव्य संचय में प्रकाशित है। उस संदर्भ में राजसागर सूरि का वृत्तांत दिया जा चुका है। इसलिए उन्हीं तथ्यों को यहाँ दुहराने का कोई अर्थ नहीं है । इसमें गुरु परंपरा इस प्रकार बताई गई है श्री विजयसेन सूरि पट्ट प्रभाकर, राजसागर सुरिंद जी, सकल भट्टारक सिर चूड़ामणि, जगदानंदन चंद जी । तत्पश्चात् वृद्धिसागर, सत्यसौभाग्य और इंद्रसौभाग्य का सादर नमन किया गया है । आगे कवि कहता है -- तप गच्छ मंडन वाचक नायक सत्यसौभाग्य गुरु सीस जी, इंद्रसौभाग्य वाचकवर राजइ, दिन दिन अधिक जगीस जी। हेम सौभाग्य तस सीस इम कहइ, तिहां लगि जे गरु रास जी, प्रतिपो जिहां लगि महिमंडलि, दिनकर करि प्रकाश जी। ग्रंथ के प्रतिपाद्य के विषय से हेमसौभाग्य ने लिखा है - श्री राजसागर सूरीसरु, सुविदित मुनि सिणगार, तेह तणा निर्वाण नो, भणसुं रास उदार । इस रास का प्रारंभ इन पंक्तियों से हुआ है सकल मनोरथ पूरणो, मंडल केलि निवास, वामानंदन वदिइ, श्री संखेसर पास ।' १ मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग २ पृ० .३३८-३३९ (प्र० सं० ) और वही भाग ४, पृ० ३०५-३०६ (न०सं०)। ..... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy