SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 554
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सौभाग्यविजय ५३७ सौभाग्यविजय नामक कई रचनाकार इसी समय के आस-पास हुए जिनका परिचय संक्षेप में आगे दिया जा रहा है। . ___ सौभाग्य विजय || - आप तपागच्छीय हीरविजय सूरि> सोमविजय > चरित्रविजय > सत्यविजय > लालविजय के शिष्य थे। इनके पिता मेड़ता के साह नरपाल थे और माता का नाम इन्द्राणी था। इन्होंने विजयसेन सूरि के शिष्य वाचक कमलविजय के शिष्य सत्यविजय से सं० १७१९ में दीक्षा ली । सं० १७६२ में इन्होंने औरंगाबाद में चौमासा किया और वहीं कार्तिक कृष्ण सप्तमी शनिवार को स्वर्गवासी हए। रामविमल ने 'सौभाग्यविजय निर्वाणरास' इनके स्वर्गवासी होने के पश्चात् लिखा है । इनकी दो रचनायें-सम्यक्त्व ६७ बोल स्तव और तीर्थमाला स्तवन मरुगुर्जर में उपलब्ध हैं जिनका विवरण दिया जा रहा है। सम्यक्त्व ६७ बोल स्तवन १७४२ भाद्र कृष्ण ११, समाणा में रचित है। इनकी दूसरी रचना 'तीर्थमाला स्तवन' प्रकाशित हो चुकी है। यह सं० १७५० में लिखी गई थी। इसमें कवि ने पूर्व देश के तीर्थों का वर्णन करने के बाद गुजरात, काठियावाड़ और मारवाड़ के तीर्थों का भी वर्णन किया है। यात्रा का प्रारम्भ सं० १७४६ में आगरा के चातुर्मास से हुआ । इस स्तवन का आदि इस प्रकार है --- आणंद दाइ आगरें, प्रणमुं पास जिणंद, चिंतामणि चिंताहरण केवल ज्ञान दिणंद । अंत- अनड अकव्वर यवन पातिसाह प्रतिबोध्यो गुरु हीर जी, संवत सोले गतालाय वरसे फत्तेपूर मां सधीर जी। ___ इसी साल फतहपुर में हीर जी ने बादशाह अकबर से भेंट की थी। गुरुपरंपरा-तास सीस वाचक पद धारक सोमविजय सुखकार जी, चारित्र आदि विजय उवझाया सत्यविजय सुविचार जी। तास सीस पंडित पदधारी, लालविजय गणिराय जी, दिल्ली पति अवरंगजेब स्युं, मिल्या आगरे आय जी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy