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________________ कवि ने अपना नाम, 'वृद्धवाल सुर' लिखा है वृद्धबाल सुर कहै, सुणज्यो सहु । गुरु परंपरान्तर्गत इस लेखक ने दिगम्बर परम्परा का स्वयं को शिष्य कहा है गछ दीगंबर गरुओ गोतम, इन्द्रभूषण सूरिराय रे, तास सीष्य श्रीपती ब्रमचार, जिनवर भक्ति सुदाय रे । कथाकोस ग्रन्थ जोइवे, रच्यो रास सिरदार रे, सुरचंद भैया ने आदर, अह प्रबंध उदार रे। रचनाकाल -- 'संवत सत्तर वत्रीसा वरषै, शुभ मुहरत शुभ वार रे; ___आसो सूदिइ पांच रस रवि दिन, वर्द्धनपुर मझार रे । इसकी अंतिम दोनों पंक्तियाँ ज्यों की त्यों वही हैं जो सुरविजय कृत रत्नपाल रास के अन्त में हैं, यथा भणतां गुणतां ने सांभलतां, सुणतां हर्ष अपार रे, गुण गातां गुणवंत केरा, वरत्यो जय जयकार रे ।' इन सबके आधार पर यह शंका पुष्ट होती है कि सुरविजय के रत्नपाल रास में ही थोड़ा फेरबदल करके किसी दिगम्बर लेखक ने यह रास लिख दिया है। इस रचना में 'सुरचंद' नाम आया है। सुरचंद नामक एक लेखक का वर्णन लालचंद जैन ने अपने शोध प्रबन्ध में किया है। उनकी रचना रत्नपालरास का विवरण पहले दिया जा चुका है । सुरेन्द्रकीर्ति मुनीन्द्र (वि०सं० १७४०)-ये मूलसंघ बलात्कारगण की नागौर शाखा के भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति के शिष्य थे। सं० १७३८ ज्येष्ठ शुक्ल ११ को इन्हें भट्टारक गादी पर प्रतिष्ठित किया गया और सात वर्ष तक ये उक्त पद पर बने रहे। ये विरथरा ग्राम के मूलवासी और पाटणी गोत्रीय माता-पिता के संतान थे। इन्होंने आदित्यवार १. मोहनलाल दलीचंद देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग ३, पृ० १२८३-८४ (प्र०सं०) और भाग ४, पृ० ४६३-४६४ (न०सं०)। २. लालचन्द जैन--जैन कवियों के ब्रजभाषा प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन, . पृ० ७०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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