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________________ १६२० मैंरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य को बृहद् इतिहास गुण तासं गावे सुख पावे हंसविजय सेवक सदा, अ भविक भावें धरी ते भणिया जिम लहो सुखसंपदा ।' सुन्दर - इनके गुरु का नाम अज्ञात है परन्तु ये लोकागच्छीय साधु थे। मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने पहले सुन्दर और मुनिसुन्दर में भ्रम के कारण इनकी रचना 'नेम राजुल ना नव भव संञ्झाय' (१५ कड़ी, सं० १७९१) को मुनि सुन्दर की रचना बताया था परन्तु जैन गर्जर कवियो के नवीन संस्करण में उसके सम्पादक ने इसे सुन्दर की रचना बताया है । इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है --- ___ राणी राजुल कर जोडी कहे यादव कुल सिणगार रे । यह संञ्झाय माला में प्रकाशित है। एक सुन्दर जी गणि ने मूलप्राकृत ग्रन्थ जंबूचरित्र पर सं. १७९५ से पूर्व बालावबोध लिखा है। सुबुद्धि विजय-आप गुलाबविजय के शिष्य थे। इन्होंने एक रचना 'मगसी जी पार्श्व दश भव स्तवन' नाम से की है। इसके प्रारंभ की पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं पणमु माहातम सदा, तेवी समा प्रभु पास, लोकालोक प्रकाशकर, समरूं तास उलास । मुखकमल कंठवासिनी, जिनशासन सणगार; मुझ जीभ वासो करो, कहूं मगसी अधिकार । मगसी मालव प्रगटिया, भवजल तारक नाव, रंकन कं रावण कीया, सो होय चित्त में भाव । xxx जंबूद्वीप ना भरत में, मघ मालव देस, सर्वदेश में मुगुटमणि दुरभिक्ष न किया प्रवेश, दस भव श्री जिणवर तणा, कमठ वर शठ भाव, इत्यादिक श्री जिनकथा, कहूं सव वर्नन बताय । १. मोहनलाल दलीचंद देसाई--जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० ५१३-१४ (प्र०सं०) और भाग ५, पृ० २७६-७७ (न०सं०)। २. वहीं, भाग ३, पृ० १४६७ (प्र०सं०) और भाग ५, पृ० ३४९ और भाग ५, पृ० ३५५ (न०सं०) ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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