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________________ समयहर्ष ५१३ इसकी अन्तिम कुछ पंक्तियां दे रहा हूँसंघ सुखदायक मनलाय सुखसागरा, नागरा नित नमइ सीस नामी । गणि समयहर्ष नित सुगुरु गुण गावता, सिद्धि नव निद्धि बहु बुद्धि पामी ।' सिद्धि तिलक -ये सिद्धिविलास के शिष्य थे। इन्होंने सं० १७७० जैसलमेर में एक 'चौबीसी' लिखी जिसमें २५ छन्द (स्तवन) हैं। ये सिद्धि विलास कौन थे, यह निश्चित नहीं है। एक सिद्धिविलास जिनसागर सरि शाखा में हो गये हैं। उन्होंने भी 'चौबीसी' बनाई है। ये सिद्धितिलक के गरु हो सकते हैं पर इनकी चौबीसी सिद्धितिलक कृत चौबीसी के बाद की रचना है अर्थात् सं १७९६ की रचना है, इसलिए कुछ शंका होती है, यह १७९६ माघशुक्ल १० की रचना है। ___ कीतिविजय कृत गोड़ी प्रभु गीत की पुष्पिका में सिद्धिवर्द्धन का इन्हें शिष्य कहा गया है। देसाई ने इनकी चौबीसी का कर्ता पहले गण विलास को बताया है, लेकिन यह भूल थी। उक्त चौबीसी के कर्ता सिद्धिविलास हैं, यह फिर भी निश्चित नहीं है कि यही सिद्धविलास सिद्धतिलक के गुरु थे। सिद्धि विजय - आप तपागच्छीय हीरविजय>शुभविजय 7 भावविजय के शिष्य थे। इन्होंने (निगोद दुख गभित) सीमंधर जिन स्तवन (१०६ कड़ी) सं० १७१३ शुचिमास शुक्ल ७, शुक्रवार को तपरवाड़ा में पूर्ण किया। इसकी आरंभिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं अनंत चउबीसी जिन नमुं, सिद्ध अनंती कोडि, केवलनाणी थिवर सवि, वंदु बे कर जोडि । यह स्तवन कवि ने वडली निवासी गेल्हाकुल दीपक अमीचंद के निमित्त रचा था । रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है १. ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह । २. अगरचन्द नाहटा--परंपरा प० ११० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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