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________________ लब्धिविजय (वाचक) यह रचना कूर्मापुत्र चरित्र पर आधारित है, यथा-कूर्मापुत्र ना चरित्र थी ओ उधरीओ ओ अधिकार, धरम हीओ धरो ओ, टाली सयल परमाद, भवियण साभंलो अ, धरम हीओ धरो अ, छंग कुडउ विवाद; धरम गुरुपरंपरा- पूनिम गछपति राजीद्या अ, पालइ पंचाचार, " श्री लक्ष्मीचंद सूरीसरु अ जंसु दरसन छइ सुखकार । प्रथम शिष्य मुख्य तेहना ओ, वीरविमल मुनींद विनय विवेकई आगला ओ, प्रवर्त्तावक मांहि दीपइ जिमचंद | तेह गुरुनी अनुमति रचिउ रास रसाल, धरम रचनाकाल - शिव दरिसनोदधि भू वत्सरइ ओ, भागवा नयर मझारि, अ रास सरस जिकोपभणइ अ, आणी हरष ज जाण, लब्धिविजय वाचक भणइ ओ, तेहनइ कुशल कल्याण । " ४३९ प्रस्तुत लब्धिविजय (वाचक) की प्रथम लब्धिविजय से न केवल गुरु परंपरा ही भिन्न है अपितु दोनों के रचनाकाल में अर्द्ध शताब्दी का लम्बा अंतराल है जिसे देखते हुए यह निश्चित होता है कि ये दोनों भिन्न-भिन्न रचनाकार थे । अतः एक को केवल लब्धिविजय तथा दूसरे को वाचक लब्धिविजय लिखकर अलगाया गया है । इस रचना में कवि ने पार्श्वनाथ की वंदना करते हुए उनके जन्म स्थान वाराणसी को भी स्मरण किया है । प्राचीन जैन साहित्य में बनारस के वाराणसी शब्द का प्रयोग प्रायः मिलता है। इससे इस शब्द की प्राचीनता प्रमाणित होती है । लब्धिसागर - खरतरगच्छीय जिनचंदसूरि की माणिक शाखा के कमलकीर्ति 7 सुमतिमंदिर > जयनंदन आपके गुरु थे । इन्होंने सं० १७७० आसो कृष्ण ५, शनिवार को चूडा में अपनी चौपाई ध्वजभुजंगकुमार चौपाई पूर्ण की थी । इसकी अंतिम पंक्तियों में ऊपर दी गई गुरु परंपरा बताई गई है। इसकी अंतिम पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं- १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई -- जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० ४५८४५९ (प्र० सं० ) और भाग ५, पृ० २११ - २१२ ( न० सं० ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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