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________________ ४२९ (उपाध्याय) लक्ष्मीवल्लभ __ महावीर गौतम स्वामी छन्द (गाथा ९६, सं० १७४१ से पूर्व) आदि - वर दे तु वरदायिनी, सरसति करि सुप्रसाद, वांचु वीर जिणंद सु गौतम गणधर वाद। उपदेश बत्तीसी भी हिन्दी में रचित है, यह गेय है, यथा आतम राम सयाणो तू झूठ भरम भुलाना, आंकडी किसके माई किसके भाई, किसके लोक लुगाई जी, तूं न किसी का को नहि तेरा, आपो आप सहाई। अन्त-- इस काया पाया का लाहा, सुकृत कमाई कीजै जी, राज कहै उपदेश बत्तीसी, सद्गुरु सीख सुणी जै जी। यह रचना प्रकाशित है। इनकी कुंडलिया बावनी और दोहा बावनी जैसी रचनाओं से पता चलता है कि सवैया, कुण्डलिया, दोहा आदि लोकप्रिय मात्रिक छन्दों के प्रयोग का इन्हें अच्छा अभ्यास था। दूहा बावनी के अंत की पंक्ति देखिये दोहा बावनी करी, आतम-परहित काज, पढ़त गुणत वाचत लिखत, नर होवत कवि राज । चौबीसी भी अनेक रागों में बद्ध संगीतमय रचना है। इसका प्रथम स्तवन-ऋषभगीत-राग विलावल में आबद्ध है। आदि--. आज सकल मंगल मिले, आज परमानंदा, परम पुनीत जनम भयो, पेखे प्रथम जिनंदा, आज । भरत बाहुबलि छंद (९९ कड़ी) अपेक्षाकृत कमजोर रचना है। इसकी भाषा शिथिल और छंदों में प्रवाह की कमी है। अन्त की पंक्तियाँ उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैं-- बाहूबल बलवंत, साधु मोटो सांचो सिद्ध, भल गुण बूधि भंडार, ग्यांन दरिसण चारित्र निधि । जंग अरीदस जीप, इला अखीयात उबारी, संयमि कर्म संहरै, नवल परणी सिद्धि नारी। सुद्ध खेमसाखि पाठक प्रगट, लिखमी कीरति जस लेअण, तसु सीस राज कर जोड़ि तव, चित्त सूद्ध प्रणमि नित चरण ।' १. मोहनलाल दलीचंद देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग ४, पृ० ३५६ (न० सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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