SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 436
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रायचंद II ४१९ सतर सताणु अने आसु मास, कीधु मांडवी सहेर चौमास । दीवाली दिन गाया उल्लास । इससे देसाई जी द्वारा दी गई सूचना मेल नहीं खाती । गुरुपरंपरा इस प्रकार बताई गई है-- श्री पूज्य भागचंद जी लोंका गछराया, ऋषि गोवर्द्धन जी शासन सूखदाया। सिष्य रायचंद साधुगुण गाया।' इस रचना की कथा अंतगडसूत्र से ली गई है। कवि ने लिखा है-- अंतगड सूत्रे अधिकार, गजसुकुमाल नो विस्तार, कह्यो जिनवर जी हितकार । इनकी दूसरी रचना थावच्चा कुमार चौपाई प्रकाशित हो चुकी है। विवरण के लिए जैन संज्झाय संग्रह (ज्ञान प्रसारक सभा) देखा जा सकता है। रचनायें सामान्य कोटि की हैं और साधु चरित्र की विशेषतायें प्रकट करने के लिए दृष्टान्त स्वरूप प्रस्तुत की गई हैं। यह स्पष्ट करना आवश्यक प्रतीत होता है कि आध्यात्मी रायचंद या श्रीमद् राजचंद्र के प्रति महात्मा गांधी अपने आध्यात्मिक गुरु जैसी श्रद्धा रखते थे। उनका जन्म सं० १९२४ और शरीरांत सं० १९५७ में केवल ३३ वर्ष की अवस्था में हो गया था। सं० १९५३-५४ में विलायत से बम्बई आने पर गांधीजी रायचंद जी से मिले थे। उस समय रायचंद की अवस्था मात्र २५ वर्ष की थी परन्तु गांधी जी ने उनके कई गुणों का उल्लेख किया है। इस सम्बन्ध में उनकी आत्मकथा देखी जा सकती है। रुचिरविमल -ये तपागच्छीय मानविमल>केशरविमल>भोजविमल के शिष्य थे। इनकी रचना 'मत्स्योदर रास' (३३ ढाल) सं० १७३६ का विवरण दिया जा रहा है। इसके मंगलाचरण में कवि ने शांतिनाथ की वंदना के बाद मां शारदा की विनती की है, यथा-- १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० ५८४ (प्र०सं०) और वही भाग ५, पृ० ३५९-३६० (न०सं०)। २. वही . . -जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास पृ० ७१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy