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________________ ४०२ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गौतमादि गणधर नमी, प्रणमी श्री गुरुपाय, अरहन्नक अणगारना, गुण कहिस्युं चितलाय । नेमि फाग नेमिनाथ के आकर्षक चरित्र पर आधारित सरस रचना है । इसके आदि-अंत की पंक्तियाँ दी जा रही हैं-- आदि-भोगी रे मन भावीयो रे, आयो मास वसंतो रे, नर नारी बह प्रेम सुं, केलि करे गुणवंतो रे, फाग रमे मिली यादवा । अंत-समुद्रविजय सुत नेमिजी, जीव सकल प्रतिपाल, राजहरष बहुभाव सुं, गायो फाग रसालो रे । यह रचना 'जैन सत्यप्रकाश' वर्ष १४ अंक ६ में प्रकाशित है। इसमें गुरुपरंपरा नहीं है इसलिए यह इन्हीं राजहर्ष की रचना है अथवा किसी अन्य राजहर्ष की यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। रामचन्द्र 'बालक' दिगम्बर सम्प्रदाय के विद्वान् रचनाकार थे। इन्होंने सं० १७१३ में 'सीताचरित की रचना की। इसमें महासती सीता का चारित्रिक गुण, विशेषतया सतीत्व की महिमा का वर्णन है। मानव मनोभावों का हृदयस्पर्शी विश्लेषण, वस्तुव्यापार वर्णन, करुण वीर और शांतरसों की मार्मिक निष्पत्ति, सशक्तभाषा शैली आदि विशिष्ट गुणों के कारण यह जैन प्रबन्ध काव्यों में श्रेष्ठ स्थान का अधिकारी ग्रन्थ है। यह ३६०० पद्यों का विस्तृत महाकाव्य है, इसकी रचना तिथि इस प्रकार बताई गई है संवत सतरह सरोतरे, मगसिर ग्रन्थ समापित करे । २ यह सीताचरित के अंतिम पृष्ठ की पंक्ति है। रचना सर्गबद्ध नहीं है फिर भी वाल्मीकि रामायण या तुलसीकृत रामचरितमानस की तुलना में इसका कथानक अनेक नवीन उद्भावनाओं और विविध १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग २ पृ० १२५-१२६ और वही भाग ३, पृ० ११८१-८२ (प्र० सं० ) तथा भाग ४ पृ० ७१-७४ (न० सं०)। २. डा० लालचन्द जैन--जैन कवियों के ब्रजभाषा प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन पृ०.६७ । www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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