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________________ ३ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास श्री खरतरगच्छ दीपता जयवंता श्री जिणचंदो रे, सकल गुणें सोहामणा दरसण थी जावे दंदो रे । वषतांवर विद्यानिला वली गुण छत्रीस निधानो रे, चन्द्र जिस्यो चढ़ती कला पूरे यश जुग परधानो रे । परगट पाट परम्परा गच्छनायक श्री जिनराजो रे, तासु सीस वाचकवरु सिरि मानविजय शिरताजो रे । तासु सीस वाचक कह गणि कमलहर्ष हित काजे रे, चउपी पांडव चरित नी ते सुणतां भावठ भाजे रे।' इन पंक्तियों से स्पष्ट है कि पाण्डव चरित्र रास मानविजय की रचना न होकर उनके शिष्य कमलहर्ष की रचना है। इसीलिए जैन गुर्जर कवियों के नवीन संस्करण में सम्पादक कोठारी ने इसे नहीं लिया है श्री अगरचन्द नाहटा ने भी इसे कमलहर्ष की रचना बताया है। खरतरगच्छ में मानविजय नामक कोई अन्य रचनाकार मेरे देखने में नहीं आया इसलिए यह रचना कमलहर्ष की सिद्ध होती है। कमलहर्ष के साथ इसका विवरण दिया जा चुका है। इसका रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है संवत सतरे से भलै बरसे अणवीसे रे, आसू बद द्वितीया तिथे रविवारे अधिक जगीसे रे । मोटे नगरे मेडते श्री शांतिनाथ सुपसाये रे, पूरी कीधी चउपइ सुणतां थिर दोलत थाये रे । मानसागर--तपागच्छ के विद्यासागर>सहजसागर>जिनसागर >जितसागर के शिष्य हैं। इनकी रचना विक्रमादित्य सूत विक्रमसेन चौपाई (५५ ढाल, १९६२ कड़ी) सं० १७२४ कार्तिक ? मागसर कुडे (कुवरनयर) में पूर्ण हई। आदि -- सुखदाता संखेश्वरो, पूरण परम उल्लास, सानिधि करिज्यो साहिबा, अधिक फल ज्यूं आस । १. श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई--जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० २५३ (प्र०सं०)। २. श्री अगरचन्द नाहटा-परंपरा पृ० १०० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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