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________________ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गुणस्थानभित शांतिनाथ विज्ञप्ति रूप स्तवन (८५ कड़ी) आदि-शांति जिणेसर जग हितकारी, वारी जेणें मारि रे, कर्म अशेष खपावि पोहतो, शिवमंदिर मनोहारि रे । आपने कई संझायों की रचना की है जिनका एक संग्रह संञ्झाय संग्रह है। आठमद संञ्झाय, श्रावकना ११ गुण संञ्झाय ७ कड़ी और श्रावक बार व्रत संञ्झाय प्रकाशित संञ्झाय हैं । आपकी एक और गद्य रचना 'उत्तराध्ययन सूत्र पर बालावबोध' ' सं. १७४१ पौष शुक्ल १३ की रचित उपलब्ध है किन्तु अफसोस है कि इन लेखकों की गद्य भाषा का नमूना नहीं प्राप्त है वर्ना तत्कालीन प्राकृत या मरुगुर्जर (हिन्दी) गद्य का प्राचीन उदाहरण उपलब्ध हो जाता और हिन्दी गद्य का इतिहास काफी प्राचीन सिद्ध होता । इनकी एक और रचना सामायिक संञ्झाय (१५ कड़ी) का आदि अंत देकर यह प्रकरण पूर्ण किया जायेगा-- आदि-सामायक जाणो नही सामायक स्या रूप रे, 'म तरा अर्थ लहो नही जेह कहिय फलरूप रे । अंत---भगवति प्रथम शतकइ कहिइ कीजउ अहनु धान रे, पंडित शांतिविजय तणो प्रणभइ नितु मुनि मान रे।' यह रचना भगवती के प्रथम शतक से ली गई है। इस प्रकार कई मानविजयों में प्रस्तुत मानविजय का कर्तृत्व अग्रगण्य है। मानविजय-तपागच्छ के विजयसिंह सूरि>देवविजय>ज्ञानविजय>रत्नविजय के शिष्य थे। आपने सं० १७१६ में अंजनासुन्दरी स्वाध्याय (३५ कड़ी) की रचना की जिसमें अंजना के दृष्टान्त से कर्मसिद्धान्त को प्रमाणित किया गया है। इसकी अंतिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं करमइ बहु दुष पामीया रे, हरिहर नल नई राम, सीता सुभद्रा द्रूपदी रे, कलावन्ती सती तामरे । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० २३२-२३४ तथा ४९१, भाग ३, पृ० १२४०-१२४३ तथा १६२८-२९ और भाग ४, पृ० ३५९-३६५ (न०सं०) । २. वही, भाग ५, पृ० ४०३ (न०सं०) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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