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भूधरदास खंडेलवाल
३३७ भधरदास खंडेलवाल -ये आगरा निवासी खंडेलवाल वैश्य थे। इन पर रीतिकालीन हिन्दी कवियों का अच्छा प्रभाव था। इन्होंने अपनी प्रसिद्ध रचना 'जैनशतक' में लिखा है
आगरे में बालबुद्धि भूधर खंडेलवाल,
बालक के ख्याल सो कवित्त करि जाने है । इसका मिलान रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि की इस पंक्ति से कीजिए
ढेला सों बनाय आय मेलत सभा के बीच
लोगन कवित्त कीबो खेल करि जानो हैं। दौलतराम जी ने इनका नाम भूधरमल बताया है और कहा है कि ये आगरा के स्याहगंज-मंदिर में प्रतिदिन शास्त्रप्रवचन किया करते थे। खंडेलवाल जी कवि और शास्त्रज्ञ दोनों थे। रीतिकाल के अधिकांश कवि भी शास्त्रलक्षणकार भी थे। वे काव्यशास्त्र की चर्चा करते थे, ये जैनशास्त्र की चर्चा करते थे। वे लक्षण प्रायः शृंगाररस के बढ़ते थे, ये दृष्टांत और उदाहरण अध्यात्म और शांतरस के दिया करते थे। भूधरदास बनारसीदास की अध्यात्म परंपरा के आगरा निवासी कवि थे।
ये १८वीं शताब्दी के अंतिम चरण के श्रेष्ठ कवियों में थे। इन्होंने विपुल साहित्य की सर्जना की है। प्रबन्ध, मुक्तक दोनों रूपों में लिखा है जैसे पार्श्वपुराण महाकाव्य है तो भूधर विलास या पद संग्रह मुक्तक का उदाहरण है। मूक्तकों में जखड़ी, विनतियाँ, स्तोत्र, बारह भावनाएँ आदि सम्मिलित हैं । मुक्तक रचनाओं में भक्ति और अध्यात्म का सुखद संयोग है। इनकी कुछ प्रमुख रचनाओं का सोदाहरण परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है ।
जैनशतक-सं०१७८१ पौष कृष्ण त्रयोदशी, रविवार; १०७ कवित्त, सवैया, दोहा और छप्पय आदि छंदों में आबद्ध यह शतक है। इसमें संसार की असारता; विषयों से विरत रहने की चेतावनी और जैन धर्म सिद्धांतों का महत्व प्रतिपादित किया गया है। डॉ० कस्तूरचंद कासलीवाल ने इसका रचनाकाल सं० १७८३ पौष कृष्ण १३ बताया है।' इसके रचनाकाल से संबंधित पंक्तियां इस प्रकार कही गई है१. सम्पादक कस्तूरचन्द कासलीवाल--राजस्थान के जैन शास्त्रभंडारों की
ग्रंथसूची, भाग ३, पृ० २३५ ।
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