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________________ ३२६ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कवि अपना नाम भाणविजय और भानुविजय दोनों लिखता है । लगता है कि दोनों एक ही व्यक्ति है। यह रचना खंभात निवासी राजमी के पुत्र बाछड़ा के आग्रह पर की गई थी। आपकी तीसरी रचना शाश्वता अशाश्वता जिन तीर्थमाला (७५ कड़ी) सं० १७४९, खंभात में पूर्ण हुई । इसकी प्रारंभिक पंक्तियों आगे दी जा रही हैं ... सरसती भगवती मनि धरी, सुमति ज्योति दातार, चार निखेपई जिन तणो, भाव पूजा करुं सार । कलश--इम भाव आणी भगति जाणी, संथुआ में जिनवरा, संवत सतर इगुण पंचासो, खंभाति संघ सुखकरा । श्री विजयभान सुरीस राज्ये विजयपक्ष सोहाकरु, बुधराज लब्धिविजय सेवक भाणविजय बुध जयकरु।' आपने एक गद्य रचना 'शोभन स्तुति बालावबोध सं० १७११ के आसपास ही लिखी थी किन्तु उसके गद्य का नमूना नहीं मिला। भावजी-रविविजय के शिष्य थे। इन्होंने 'पार्श्वनाथ छंद' (१०१ कड़ी) की रचना सं० १७६० से पूर्व किसी समय की। इसमें पार्श्वनाथ का माहात्म्य दर्शाया गया है, यथा --- परतक्ष पारसनाथ आसपूरण अलवेसर, परतक्ष पारसनाथ परममंगल परमेसर । परतक्ष पारसनाथ सूजस त्रिह भवणे सोहे, परतक्ष पारसनाथ सयल सुरनर मन मोहे । श्री पार्श्वनाथ वीर प्रतपौ सुरगिरि सुरिज ज्यूरासी, पंडित श्री रविविजय पवर, सीस जंपइ भाव जी । इसका आदि इस प्रकार हुआ है सुरतरु चिंतामणि समो, परगट पारसनाथ; परमेसर प्रणमु सदा, हरष जोड़ी हाथ ।' १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कबियो, भाग २, पृ० ३५६-५७ एवं भाग ३, पृ० ११९५, १३२९ और १६२४ (प्र० सं०) तथा भाग ४ पृ० १८८-१८९ (न०सं०)।। २. वही, भाग ३, पृ० १२०८ (प्र०सं०) और भाग ५, पृ० १९४ (न० सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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