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________________ ३२४ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास जीव अजीव पुन्य पाप जोय, आस्रव संवर निर्जरा होय, बंध मोक्ष नव तत्व अ सार, हिवे कहूं अहनो विस्तार । रचनाकाल से संबंधित पंक्तियाँ निम्न हैं-- संवत सतर छसठानी साल, नगर पाटण रही चोमास, भागविजय जी से विनती करी, संघ समक्षे चीत धरी । इस चौपाई की अंतिम पंक्तियाँ अनलिखित हैं-- बसे छोहोतर बोल ज सार, आगम थी कह्यो विस्तार, नवतत्व नी चोपाइ अह, भणे गुणे सुख पामे तेह ।' भानुविजय-तपागच्छीय लाभविजय>गंगविजय>मेघविजय के शिष्य हैं । आपने 'पार्श्वनाथ चरित्र बालावबोध' सं० १८०० पौष कृष्ण अष्टमी, सोमवार को पूर्ण किया। इसके अन्त में गुरु परम्परा आदि का विवरण दिया गया है, यथा-- श्री तपागच्छ गगन दिनकर सदृश विजयदान सूरीन्द्रा तवंशो लाभविजया तशिष्यो गंग विजयाख्याः ; गुरु मेघविजय की प्रशंसा में कवि ने लिखा है मेघादिविजय नामा तर्क साहित्य शास्त्रविद् विदुरा, तच्चरणाब्जद्विरेफा बभूव भानुविजयकाः । यह रचना भानुविजय ने अपने शिष्य के लिए की। रचनाकाल इस प्रकार बताया है--- भूप्संवत्स् चन्द्रष्टे १८०० पोषे मासे सितेतरे पक्ष सोमेष्टमि दिनेभू संपूर्णा ग्रंथ सुखयोगे। इस रचना की गद्य भाषा का नमूना उपलब्ध नहीं है। एक भानुविजय या भाणविजय तपागच्छ के विद्वान् लब्धिविजय के शिष्य हैं। इनका विवरण आगे दिया जा रहा है। भानुविजय और भाणविजय शिष्य लब्धिविजय तो एक ही व्यक्ति हैं किन्तु मेघविजय शिष्य भानुविजय इनसे भिन्न प्रतीत होते हैं । लगता है कि मेघविजय १. मोहनलाल द लीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग ३, पृ० १४१५-१६ (प्र० सं०) और भाग ५ प० २५८ (न० सं०) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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