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________________ पुण्यरत्न २९९ पुण्यरत्न ( मुनि ) कृत नेमिकुमार रास सं० १७६१ का उल्लेख उत्तमचंद कोठारी ने अपनी सूची में किया है किन्तु नामोल्लेख के अलावा अन्य कोई विवरण नहीं होने से उसकी चर्चा यहीं समाप्त की जा रही है। कोठारी जी का कथन है कि ये रचनायें उन्होंने नाहटा संग्रह में देखी है। पुण्यविलास-खरतरगच्छीय समयसुन्दर की परंपरा में आप पुण्यचंद्र के शिष्य थे। इन्होंने 'मानतुंग मानवती रास' की रचना सं० १७८० में की। रास का आदि निम्नांकित है नमुसदा नितमेव, आदीसर अरिहंत पय, दरसण श्री जिनदेव, लूणकरणसर में लह्यो। इसके पश्चात् वागेश्वरी की वंदना है। कवि ने मानवती के दृष्टांत द्वारा सत्य की महत्ता घोषित की है; यथा मानवती परबंध मृषावाद ऊपर कहुँ, सुणी तास संबंध कुण मानवती किहांथई, जीव्यौ तास प्रमाण, वचन बोलि पाले जिके, जीवन धिग तसू जाण, वचन बोलि बदलै जिके । यही उपदेश पाठकों को रास देता है। इसका रचनाकाल देखिये संवत सतरै अस्सीओ, रह्या लणसर चौमास; वाचक श्री पुण्यचंद नइ सुपसाई रे कीधो रास । रविवार सुदि द्वितीया दिनइ, रिति सरद बीजे मास; शिष्य पुण्यशील नइ आग्रहइ, इमजंपइ रे कवि पुन्य विलास ।' पुण्यहर्ष-आप खरतरगच्छीय कीर्तिरत्नसूरि की परंपरा में हर्षविशाल> हर्षधर्म>साधुमंदिर>विमलरंग> लब्धिकल्लोल - ललितकीर्ति के शिष्य थे। कीतिरत्न सूरि शाखा में महोपाध्याय पुण्यहर्ष गणि की शिष्य परंपरा लम्बी थी। इनके एक शिष्य अभयकुशल ने १. जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० ५३६-५ ३७, भाग ३, पृ. १४३९ (प्र० सं०) और भाग ५, पृ० ३१४-३१५ (न०सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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