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________________ १९६ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रचनाकाल संवत सतरइ बावन समइ जी जेठसित पक्ष जांण; तिथि बीजा रविवार शुभ अति भलो जी, शुभचंद्र हं तो सुख ठांण सील संबंधइ अधिकार रच्यो जी सुणतां होवै उल्लास; ओछा अधिको तिण मांहइ कह्यो जी मिछा दुक्कड़ तास । अंतिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं – ऋषिदत्ता चौपइ कीधी रंगस्युं जी सुणतां हुवै सुषकार; प्रीतिसागर मुनिवर गुण गांवता जी, आणंद जय जयकार ।' दूसरी रचना धर्मबुद्धि पापबुद्धि का कर्ता भी इन्हें ही अगरचन्द नाहटा ने बताया है किन्तु इसका कोई प्रामाणिक विवरण और उद्धरण न तो नाहटा जी ने दिया और न श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने दिया है। इसलिए यह कहना कठिन है कि यह रचना वस्तुतः किसकी है। श्री नेमविजय ने भी धर्मबुद्धि पापबुद्धि चौपई लिखी है जिसका विवरण पहले दिया जा चुका है। हो सकता है कि यह वही रचना हो। पुण्यकोर्ति--खरतरगच्छ के युगप्रधान जिनचंद्र सूरि के शिष्य थे। इन्होंने 'पुण्यसार कथा' की रचना सं० १७६६ में की थी। रचना सामान्य कोटि की है। कवि पुण्यकीर्ति सांगानेर, जयपुर के निवासी थे। इसके अतिरिक्त विशेष विवरण और उद्धरण प्राप्त नहीं है।' पुण्यनिधान (वाचक)--आप भावहर्ष>अनंतहंस>विमल उदय के शिष्य थे। आपने सं० १७०३ विजयदशमी को वैरागर में अगड़दत्त चौपई पूर्ण की जिसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ निम्नवत् हैं - परमेसर धुरि प्रणमि करि, सद्गुरु प्रणमि उलास, सरसति पिण प्रणमेवि सुरि, विरचिस वचन विलास । सरस्वती की प्रार्थना करके कवि आकांक्षा करता है कि-- १. मोहनलाल दलीचंद देसाई - जैन गुर्जर कवियो, भाग ३, पृ० १३७६ (प्र०सं) और भाग ५, पृ० १३२-१३३ (न०सं०) २. सम्पादक कस्तूरचन्द कासलीवाल और अनूपचन्द--राजस्थान के जैन शास्त्र भंडारों की ग्रंथसूची, भाग ३, पृ० १६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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