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________________ पर्वत धर्मार्थी ३९३ ___पर्वत धर्मार्थी--आपने समाधितन्त्र बालावबोध की रचना की है। जिसका मूल पूज्यपाद दिगम्बर की रचना समझी जाती है। इसका आदि इस प्रकार हुआ हैअर्थ --- जिन अनादिकाल की मोह निद्रा को उपसम (वि) रमीनइ आपणयो आपण पासि देख्यो अनइ आपण हुती बीजे पुहुल प्रपंच ते सर्व आपणां गुण हुंती अति विजलो देखीइ सो अक्षय सास्वतो बोधदर्शन ज्ञान प्रकाश रूप छइ ।' यह महत्वपूर्ण है कि १८वीं शती में गद्य की इतनी प्रसाद गुण सम्पन्न सक्षम भाषा-शैली का विकास जैन लेखकों ने कर लिया था यह नमूने की तीन पंक्तियों से प्रमाणित होता है। प्रागजी--आप भीम के शिष्य थे। आपने बाहबल संज्झाय की रचना सं० १७४१ विजयादशमी को पाटण में पूर्ण की; इसकी प्रारंभिक पंक्ति प्रस्तुत है-- बांधव जी वैरागें व्रत आदरी हो लाल, बाहुबल बलवंत । इसकी अन्तिम पंक्तियाँ भी उदाहरणार्थ उपस्थित है महि मण्डल महिमाधरा हो लाल, गुरु श्री भीम मुणिंद, तस सेवक प्राग जी हो लाल, पामइ परम आनन्द । इम जिन मुनि गुण गाइया हो लाल, पाटण नगर मझार, सतर इकतालीसवै हो लाल, विजयदसमि दिनसार । इस उद्धरण द्वारा लेखक का नाम, उसके गुरु का नाम और रचनाकाल तथा रचना स्थान का प्रमाण अन्तःसाक्ष्य के आधार पर प्राप्त हो जाता है। प्रीतिवर्द्धन--आपकी दो कृतियों का पता चला है किन्तु आपका इतिवृत्त और गुरु परंपरा अज्ञात है आपकी प्रथम रचना महावीर स्तवन (३४ कड़ी) सं० १७६८, किशनगढ़ में चौमासे के समय लिखी गई थी। इसका रचनाकाल इस प्रकार है-- १. मोहनलाल दलीचंद देसाई-जन गुर्जर कवियो, भाग ५, पृ० ४२१ (न०सं०) २. वही, भाग २, पृ० ३६२ (प्र०सं०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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