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________________ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अर्थात् 'काव्य शास्त्र विनोदेन कालोगच्छति धीमतां' की उक्ति उन पर पूर्णतया चरितार्थ होती है। वे रसिकों से काव्यचर्चा को ही परमानंद की वस्तु मानते हैं। महात्मा लाभानंद या आनंदघन महान अध्यात्म योगी और संत कवि थे। जैन साधना के क्षेत्र में आचार्य हेमचन्द्र के छः सौ वर्ष पश्चात् वे दुसरे यूगसर्वज्ञ संत हैं। दोनों के मार्ग भिन्न हैं पर गन्तव्य एक हैं। हेमचन्द्र ने लोकसंग्रह का मार्ग बुना था पर आनंदघन का मार्ग आत्मसाधना का था। इसलिए एक ने राजदरबारों को अपना कार्यस्थल बनाया तो दूसरे ने जंगलों और बीरानों को। लोकसंग्रह के क्षेत्र में हेमचन्द्र के रिक्त स्थान की पूर्ति यशोविजय ने ही की। वे प्रखर नैयायिक, ताकिक, शास्त्रज्ञ आचारबान् साधु, समाजसुधारक, धर्मप्रभावक महापुरुष और श्रेष्ठ साहित्यकार थे। अतः हम चाहें तो इस कालखण्ड का नाम उनसे जोड़कर इसे एक अच्छी पहचान दे सकते हैं। आपने प्राकृत, संस्कृत और मरुगर्जर में पुष्कल रचनायें तो की ही, साथ ही संप्रदायों की मनमानी के विरुद्ध दिग्पट चौरासी बोल, देवधर्मपरीक्षा आदि कई ग्रंथ लिखे । इस प्रकार आपने युग का मार्गदर्शन किया अतः आप युगपुरुष थे और युग का नामकरण आपके नाम पर उपयुक्त है । यशोविजय जी ने भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की तरह एक मण्डल का निर्माण किया जिन्होंने यशोविजय के आदर्शों पर चलकर अपनी रचनाओं से युग को पूर्णतया प्रभावित किया। इनमें विनयविजय, .. सत्यविजय आदि हैं। इस शती के पूर्वार्द्ध के महाकवियों में जिनहर्ष का उल्लेख किए बिना वर्णन अपूर्ण रहेगा। इन्होंने साठ वर्षों तक मरुगुर्जर में रास, चौपाई, प्रबन्ध और चरित्र आदि की रचना की । इनका प्रारम्भिक जीवन राजस्थान में और सं० १७३६ के पश्चात् सं. १७६३ तक गुजरात (पारण) में बीता; अतः ये मरु-गुर्जर के वास्तविक प्रतिनिधि कवि हैं। इन्होंने दोनों प्रदेशों में प्रचलित देसियों-- द्वालों का अपनी रचनाओं में भरपूर उपयोग किया। इनकी भाषा में व्रजभाषा, पंजाबी का भी पुट प्राप्त होता है। भक्तिरस और प्रेमतत्त्व इनके पदों और दोहों में भरा हुआ है, यथा धन पारेवा प्रीति, प्यारी विणन रहे पलक । ए मानवियाँ रीति. देखी जसा न एहड़ी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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