SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 282
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नयप्रमोद २६५ की।' श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने इनकी एक ही रचना, अरहन्नक मुनि प्रबन्ध का उल्लेख जैन गुर्जर कवियो में किया है। इन रचनाओं के विशेष विवरण और उद्धरण उपलब्ध नहीं हो सके। नयविजय --ये तपागच्छ के साधु ज्ञानविजय के शिष्य थे । इन्होंने 'नेमिनाथ बारमासा' (४२ कड़ी) की रचना सं० १७४४, थराद में की। इसकी कुछ पंक्तियाँ उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैं-- अन्त -- जे भवि भावइ गावइ पावइ ते धनपूर, नित नित आणंद अति घणो, तस तणो वधतइ नूर । रचनाकाल सत्तर चिमालइ वीरभद्र थिरपद रही चौमास, आनंद अधिका पाया, गाया बारेमास । गुरुपरम्परा--सकल पंडित सिरताज राज (विजयराज) राजई, ज्ञानविजय प्रभु बड़ह बाजई । ते गुरु चरण पसाय पामी, नयविजय विनम्या नेमि स्वामी।३ इसकी भाषा में नर, सिरताज जैसे फारसी शब्द और पाया, गया आदि खड़ी बोली की क्रियायें भाषा प्रयोग की दृष्टि से विशेष द्रष्टव्य हैं। इनकी दूसरी रचना 'चौबीसी' सं० १७४६ में रचित है। मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने इसे जैन गुर्जर कवियो के प्र० सं० में तिलकविजय के शिष्य नेमविजय की रचना बताया था। नवीन संस्करण ( जैन गुर्जर कवियो) के सम्पादक श्री जयन्त कोठारी ने इसका कर्ता भी इन्हीं नयविजय को बताया है किन्तु रचना का उद्धरण नहीं दिया है। नयणरंग---आपने सं० १.९४ से पूर्व अर्बुदाचल वृहत् स्तव की रचना की। यह सूचना मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने जैन गुर्जर १. अगरचन्द नाहटा--परंपरा पृ० १०७ । १. मोहनलाल दलीचंद देसाई--जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० १५२ (प्र०सं०) और भाग ४, पृ० २५६ (न०सं०) ३. वही, भाग ५, पृ० ४५ (प्र०सं०), ४. वही, भाग ३, पृ० १३३३ और १३९६ (प्र० सं०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy