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नंदराम
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आपकी एक सशक्त रचना नन्दराम पच्चीसी (सं० १७४४) का उल्लेख जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थसूची भाग ३ में है। इसकी अनेक प्रतियाँ विभिन्न जैन शास्त्र भण्डारों में सुरक्षित हैं, इससे इस रचना की लोकप्रियता का अनुमान होता है। इसलिए इसका विवरण देना उचित लगा । इसके मंगलाचरण में गणेश की वंदना है .
गनपतिको ज मनाय हरि, रिद्ध सिद्ध के हेत, वाद वादनी मात तु, सुभ वंछित बहु देत । कछू कह्यौ हूं चाहता हुं, तुम्हार पुनि परताप ।
ताहि सुण्या सुख उपजै, दया करो अब आप। इसमें कलि व्यौहार का वर्णन करता हुआ कवि लिखता है--
कली व्योहार पच्चीसी बरनी, जथायोग मतितेरी,
कलजुग की ज बानगी ए है, औरो रासि बहोरी। इसका रचनाकाल इस पंक्ति में है--
संवत सतरा सै चवाला, कातिक चंद्र प्रकासा,
नन्दराम कहु......... इसकी भाषा पुरानी हिन्दी (मरुगुर्जर) है जो जैन साधुओं की भाषा के मेल में है। इसलिए इसे मरुगुर्जर रचनाओं में स्थान दिया गया है, यद्यपि लेखक जैन नहीं है पर रचना का प्राप्ति स्थान भी जैन शास्त्र भण्डार ही है।
नथमल (कवि) आपकी रचना बंकचोर की कथा अथवा धनदत्त सेठ की कथा उपलब्ध है जो सं० १७२५ में चाटसू में रचित है। इसमें धनदत्त के चरित्रांकन के माध्यम से बंकचोर (नामी चोर के हृदयपरिवर्तन की मर्मस्पर्शी कथा दी गई है। इस कथा के व्याज से कवि ने चरित्र की नाना भावदशाओं और वृत्तियों का परिचय दिया है। रचनाकाल इस प्रकार है -
संवत सतरा सै पचीस, आषाढ वदी जाणौ वर तीज,
वार ज सोमवार ते जाणि, कथा सम्पूर्ण भइ परमाण । १. सम्पादक कस्तरचन्द कासलीवाल - राजस्थान के जैन शास्त्रभंडारों की
ग्रंथसूची, भाग ३, पृ० २८०-२८१ ।
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