SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्ममंदिरगणि समझने का भ्रम हुआ होगा, परन्तु बाद में सुधारकर रचना स्थान जैसलमेर किया गया है। इनके अलावा 'आत्मपद प्रकाश' का देसाई ने केवल नामोल्लेख किया है। नवकार रास और शत्रुजय गीत का उद्धरण उपलब्ध है। नवकार रास रत्नसमुच्चय पृ० ४०९-११ पर प्रकाशित है। इसकी अंतिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं दिन दिन अधिकी संपदा अ, मनवंछित सुख थाय, दया कुशल वाचक वरु ओ, धर्ममंदिर गुणथाय, नमु नवकारने अं। दो शत्रुजय गीत देसाई जी के पास थे जिनका आदि अन्त दिया गया है, दोनों ५ कड़ी के हैं, प्रथम गीत का आदि 'सहीयां सेतुंज गिरिवर भेटीयइरे' से हुआ है और द्वितीय का अन्त 'धरममंदिर जिन गावता हूँ, दिनदिन अधिक हुलास हुँ' से हुआ है । धर्मसिंह - आप लोकागच्छ के रत्नसिंह के प्रशिष्य और देवजी के शिष्य थे। आपका जन्म जामदगर के दशा श्रीमाली वणिक् जिनदास की पत्नी शिवाजी की कुक्षि से हुआ था। सं० १७२८ में इनका स्वर्गवास हुआ। आप मूलतः गद्य लेखक थे। इन्होंने २७ सूत्र पर टव्वा लिखा है और समवायांग सूत्र पर हंडी लिखी है। श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई ने इनका जन्म सं० १६८५, दीक्षा सं० १७०० बताया है। परन्तु यह शंकास्पद है। इन्होंने सं० १६८५ में शिवजी ऋषि के समय से अलग हुई दरियापुरी संघ की स्थापना की। इनके नाम पर सं० १७२५ में रचित धर्मसिंह बावनी का उल्लेख भी किया जाता है किन्तु वह रचना वस्तुतः खरतरगच्छ के धर्म सिंह या धर्मवर्द्धन की है जिसका विवरण आगे दिया जा रहा है । इसके गद्य का नमूना उपलब्ध नहीं हो पाया है। धर्मवर्द्धन, धर्मसिंह, महोपाध्याय श्री अगरचन्द नाहटा ने १. मोहनलाल दलीचंद देसाई ---जैन गुर्जर कवियो भाग २ प० २३५-२४३ तथा भाग ३ पृ० १२४३-४५ (प्र० सं०) २. वही भाग ४ पृ० ३२३-३२७ (प्र०सं०) । ३. वही भाग २ पृ० ५९४ और भाग ३ पृ० १६२४ (प्र० सं०) ४. वही भाग ४ पृ० १ (न०सं०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy