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________________ २३९ देवविजय वीरे दान वषाणीऊ, धर्म धुरें सिरदार, जिन पणि संयम अवसरि, साचवें दानाचार। रूपसेन कुंयर तणी, दान कथा सहु कोइ। सुणजो सकल श्रोतारुजन, जिनरुचिदान नीहोइ । रचनाकाल --संवत सतर अठोतरे रे शुद सातम माहा मास, कड़ी नगरे कवीवार अनोपम, रचीओ ओ रास उल्लास।' इनकी दूसरी कृति 'संखेश्वर सलोको' (सं० १७८४ महा सुद ५ शुक्र) का आदि देवी सरसति प्रणम् वरदाइ, ब्रह्मानि बेटी कवितानि माई । अञ्झारि आदे कुमारी भाल, देज्यो वाणी कास्मीर वाली। पास संखेश्वर सलोको कहीई, पाप निवारी निरमल थइइ । चंद्र प्रभु जिन आठमावारे, प्रतिमा भरावी तेहनो विचार । सलोको की अंतिम पंक्तियाँ निम्नांकित हैं -- संवत सतर चोरासी वरसें, महा शुदि पांचम शुक्र उछाहें; दीप गुरु चरण पसायें, कीधो सलोको मन उमायें ।' यह रचना सलोका संग्रह में प्रकाशित है। जैन गुर्जर कवियो के प्रथम संस्करण में इनकी और विजयरत्नसूरि शिष्य देवविजय (II) की रचनाओं में घालमेल हो जाने के कारण दोनों का रचना-प्रसार उलझ गया था किन्त नवीन संस्करण में सम्पादक जयंत कोठारी ने उसे सुलझाकर प्रस्तुत किया है, जिससे दोनों की रचनाओं का अलग अलग विवरण देना सम्भव हुआ। नाम का जो भ्रम था अर्थात् प्रथम संस्करण भाग २ पृ० ४१७ पर जिसे दीपविजय बताया गया था वह भी स्पष्ट हो गया है और वह कवि दीपविजय नहीं बल्कि देवविजय हैं। ब्रह्म देवा या देवजी .. आप ब्रह्मचारी थे अतः देवा ब्रह्म कहे जाते थे। ये जयपुर के रहने वाले थे। उन्होंने सम्मेद शिखर विलास की रचना की है। उसमें वे लिखते हैं१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कवियो भाग ५ पृ० ३००-३०१ (न०सं०)। २. वही भाग ५ पृ० ३००-३०२ (न० सं०)। ३. वही भाग २ पृ० ४१७, ५०१-५०२ और भाग ३ पृ० १४२४ (प्र०सं०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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