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________________ २३६ मर गुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास राग जयजयवंती --भक्त अमरगन प्रणत मुगटमणि, उलसत प्रभाअन ताकू द्युतिदेत है। पाप तिमिर हरे सुकृत संचय करे, जिनपद जूगवर नीके प्रनमेतु है । जूगनिकी आदि ज तू परत भव जल भ्रांति, जय जयवंत संत ताके सांच सेतु है, नाभिराय के नंद जगवंद सुखकंद, देव प्रभुधरी आनंद जिनंद वंदेतु है । अन्त- विजयदेव सूरिंद पटधर विजयासह गणधार, सीस इणि परि रंगे बोले, देवविजय जयकार । रचनाकाल -सतर संवत त्रीस वरसे, पोस सूदि सितवार, तेरस दिन मरुदेवी नंदन, गायो सब सुखकार । ते नर लच्छी के भरतार ।' चंरक रास -(४८ ढाल सं० १७३४ श्रावण शुक्ल १३ घाणेरा) इसके प्रारम्भ का पृष्ठ नहीं है। इसमें गुरु परम्परान्तर्गत विजयदेव> विजयप्रभ>विजयरत्न>विजयसिंह> उदयविजय का वंदन किया गया है। साथ ही साधुविजय पुण्यविजय आदि गुरुभाइयों के साथ साध्वी राजश्री का भी उल्लेख किया गया है। इसकी अंतिम पंक्तियाँ उद्धत की जा रही है ज्ञान विजय नई वांचण सारइ, श्रोतानइं उपगारइं जी, देवविजय कवि वयण विचारई, घाणोरा नयर मझारइं जी। संवत सतर चोत्रीसा वरषइं, श्रावण सुदि मन हरषइं जी, तेरस दिन जलधर जल वरसई, जय जय लच्छी वरसई जी। दूहा- चंपक नी चोपाई ढाल अड़तालीस; गाथा दूंहा वइसइ च्यालीस । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो भाग ४ पृ० २५६-२५७ (न० स०) २. वही भाग २ पृ० ३४९-५०, भाग ३ पृ. १३२३-२५ (प्र० सं०) और भाग ४ पृ० २५६-२५८ (न०सं०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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