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________________ २११ तेज मुनि आपकी दूसरी रचना 'जितारीराजा रास' (१५ ढाल सं० १७३४ वैशाख कृष्ण २ बुधवार सिरोही) रत्नसार नो रास के साथ बालमुनि कृपा चंद द्वारा प्रकाशित है । आदि- प्रात ऊठी प्रणमुं सदा श्री जिनपास जिणंद, तास पसाई पामीइं सुखशांति आनंद । मनि समरुं हुं सरस्वती आपइ अमृत वाणि, सीस नमामुं निजगुरु गुणमणि केरा खांणि । X X x शील तणां गुण वर्णवुं जे जग मांहि सार, जीतारी नृप की कथा अति सुंदर सुखकार । इसमें भी वही गुरुपरंपरा बताई गई है जो प्रथम रचना में बताई गई थी । इसलिए ये दोनों रचनायें एक ही तेजमुनि की हैं । रचनाकाल निम्नवत है- संवत सतर रामवेद संख्या निर्मल बइसाख मास, बदी द्वितीया बुधवार वदी तो, सिरोही नयर उल्हास । इनकी तीसरी रचना 'थावच्यानी संज्झाय' ३ ढालों में रचित है और इसे साराभाई नवाब ने जैन संज्झाय संग्रह में प्रकाशित किया है । इसमें भी उपरोक्त गुरुपरंपरा बताई गई है । श्री जिनशासन मांहे सुंदरु रे ऋषि भीम जी सुखकार हो, तेजपाल भणे भाव सुं रे, थावच्चो अणगार रे । साधु सोभागी थावच्यो वंदीये रे । ' पहले तेजपाल के नाम जिस थावच्या संज्झाय का उल्लेख श्री देसाई ने किया है, संभवतः वह यही रचना हो, परन्तु भ्रम का पूर्णतया निराकरण तो दोनों के पाठ मिलान पर ही संभव है । तेजसंह--आंचलगच्छीय ज्ञानमेरु के प्रशिष्य और सुमतिमेरु के शिष्य थे । इन्होंने सं० १७३२ में नेमचरित सवैया की रचना की । १. देसाई, भाग पृ० १३०-१३४; भाग ३ पृ० ११८४-८५ (प्र०सं० ) । २. उत्तमचन्द कोठारी कृत रचना सूची -- ( प्राप्ति स्थान पार्श्वनाथ शोध संस्थान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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