SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 226
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेजपाल इसके अंतिम छंदों में गुरुपरंपरा का निम्नवत् उल्लेख मिलता हैगुजराति लोकागच्छ गाजतो, प्रभु तेजसिंह हो गणि अधिक प्रताप । दिनदिन श्री गुरु दिल सूधइ सही समरइ हो तस नासइ संताप । गुणनिधि गिरुआ श्री गुरुपूज्य इन्द्रजी हो सदा पूज्य पवीत्र, अनुत्तर तेज कहइ इमे चतुर सुणो हो रत्न चरीत्र । अमरसेन वयरसेन रास (४ खण्ड, सं० १७४४ माधव (वैशाख) शुक्ल ३, अहिमदपुर) आदि-प्रथम जिणेसर प्रणमी ये, नाभि नरेसर नंद, प्रणमु निजगुरु प्रेम सुं, सुरपति जी सुखकंद । दान के महत्व को दर्शाने वाली यह रचना भी है, यथा-- दान सुपात्रे देयतां, दालिद्र नासइ दूरि, दुख वियोग मिटइ दान थी हरिस्त्री बसइ हुजर । अमरसेन वयरसेन अति आप्यो दान उदार, संपति लही भवि सांभलउ, वारु कथा विस्तार । सोहग स्त्री वयरसेन नी प्रवरशील प्रतिपाल, कवि चोजइ कवीता कहइ रमणी चरित्र रसाल । रचनाकाल संवत वेद युग मुनि शशी माधव मास रे तृतीया शुक्ल सार । अहिमदपुर आणंद मां कर्यो, रास रंगि रे प्रकाश जयकार । अंत-पडिकमणा सूत्र वृत्ति देखिनइ, पुष्पमाला थी रे अह जोई प्रबंध, ... कविता चातुरी विस्तर करी श्री गुरु सांनिध रे ओ रचियो संबंध । प्रवर पंडित पूज्य इन्द्रजी स्तव्यो चउथो रे खंड शिष्य तेजपाल, भविक सुणो भल भाव सुं, अतिसुंदर अकादशमी ओ ढाल ।' इसके अतिरिक्त तेजपाल की एक अन्य कृति 'थावच्या मुनि संज्झाय' का भी उल्लेख तो मिलता है किन्तु उसका विशेष विवरण एवं उद्धरण प्राप्त नहीं हो सका। १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई- जैन गुर्जर कवियो भाग २ पृ० ३०५; भाग ३ पृ० १२९३-९४ (प्र० सं०) और भाग ५ पृ० १०-१२ (न०सं०) १४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy