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________________ जिनसुन्दर सूरि १६१ किण विध श्री महावीर जी, किण विध गौतम स्वाम । किण विध प्रश्नोत्तर कह्या, ते सुणज्यो अभिराम । कवि ने प्रथम खण्ड पूरा किया सं० १७६२ श्रावण कृष्ण द्वादशी, शुक्रवार को और द्वितीय खण्ड उसी वर्ष श्रावण शुक्ल सोमवार को, इसका तीसरा खण्ड सिन्धु देश में लिखा गया, यथा गछपति युगवर चंद विराजे, तेहने पाटे छाजेजी सिन्धु देश सवा लाख कहियें नयरपुर तिहां लहिये जी। चौथे खण्ड के अन्त में लिखा हैसिंध लवालक्ष देश बड़ा हे मुनि दिल विच भावंदा हे, सुन्दर नगर गाजीपुर नीको, ग्रहणे गांठे करी सोभंदा हे। इसकी भाषा में दिल, विच, भावंदा, सोभंदा आदि शब्द स्थानीय प्रभाव के सूचक हैं । अन्त में रचनाकाल का उल्लेख इस प्रकार किया गया है-- संवत सतरे से बासठे, आगरा नयन मझार । आसोज बद अकम दिने, अह कह्यो अधिकार । कवि जिनसुन्दर सूरि ने अपनी गुरुपरम्परा का निर्देश इन पंक्तियों में किया है ससी गछ खरतर गुणनिलो, विरुद बेगड़ श्रीकार; श्री श्रीमाल कुल सेहरो साह हरराज सिरदार । तेह तणो सुत जाणीये महिमा समुद्र बखांण; श्री जिसचंद पाटे जयो, चौद विद्या गुण जाण । श्री जिनसमुद्र सूरींद ने पाटे सुन्दर सुरीद, प्रश्नोत्तर कीधी चौपइ मन धरी अधिक आणंद ।' मुक्तिविजय द्वारा लिखित इसकी प्रतिलिपि इस विवरण का आधार है। जिमसोम--आपकी एकमात्र एक कृति 'स्नात्रविधि'२ का उल्लेख १. मोहनलाल दलोचन्द देसाई----जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ४६२-६६ (प्र० सं०) और और भाग ५ पृ० २२४-२२७ (न ०सं०)। २. वही, भाग ३ पृ० १६४० (प्र०सं०) और भाग ५ पृ० ३१६(न०सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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