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जिनविजय
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गुणावली रास नामक तीन कृतियाँ प्राप्त हैं। इनमें से प्रथम शंकास्पद है और द्वितीय शायद जिनविजय की कृति है पर इन दोनों के उद्धरण नहीं मिले; केवल गणावली रास का विवरण-उद्धरण उपलब्ध है। यह निर्विवाद रूप से इनकी रचना है। इसके आदि की पंक्तियाँ निम्नांकित हैं--
सकल सुखदायक सदा, त्रेवीसमो जिनचंद,
प्रणमुं पास संखेसरु नामे परमाणंद । रचनाकाल-संवत सतर अकावना वरसे विजयदशमी बहु नेहिं;
सूरति बंदिर मां रास रच्यो अ, साह विजयसिंध माणक जी गेहेरे ।
अर्थात् यह रचना सं० १७५१ आसो शुक्ल १० सूरत में साह विजयसिंध के घर पर पूर्ण हुई थी। इसमें २७ ढाल ४८७ कड़ी है, यथा--
कहे जिनविजय मुनि धन्यासीइ सत्तावीसमी ढाल,
झबरवाडी पास पसाईं घरि घरि मंगलमाल रे ।' एक पद्य रचना 'पंच महाव्रत संज्झाय' और तीन गद्य रचनाओं का भी नाम मिला परन्तु उनके उद्धरण नहीं प्राप्त हुए । गद्य रचनायें हैं-षडावश्यक सूत्र बालावबोध सं० १७५१ दिवाली, सूरत; दंडकस्तवन सं० १७५२ और जिवाभिगमसूत्र बालावबोध १७७२ । इनके गद्य-नमूने नहीं प्राप्त हो सके परन्तु इतना तो निश्चित हआ कि ये पद्यकार के साथ ही गद्यकार भी थे।
जिनविजय III ये भी तपागच्छ के कवि थे और सत्यविजय पन्यास 7 कर्परविजय 7 क्षमाविजय के शिष्य थे। आपके पिता राजनगर निवासी श्रीमाली वणिक श्रीधर्मदास और माता लाडकँवर थीं। आपका जन्मनाम खुशाल था। सं० १७५२ में इनका जन्म, १७७० कार्तिक कृष्ण ६ बुधवार को अहमदाबाद में दीक्षा और सं० १७९९ श्रावण कृष्ण १० मंगलवार को पादरा में स्वर्गवास हुआ था। आपने कर्पूरविजय गणिरास और क्षमाविजय निर्वाणरास लिखा, इनके अलावा आपने अन्य कई स्तवन, गीत और काव्य रचनायें की हैं जिनका विवरण दिया जा रहा है । 'कर्पूरविजय गणिरास' (९ ढाल सं० १७७९ विजयादशमी शनिवार, बड़नगर) का आदि-- १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो भाग ४ पृ० ३७९(न०सं०)
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