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जयरंग या जैतसी
रचनाकाल - संवत सतर सतोतरमे समैजी, बीकानेर मझार । पाठक पुन्यकलस शिष्य जैतसी जी, गीत रच्या सुखकार ।
यह संज्झाय मोटु संज्झायमाला संग्रह, संज्झायसंग्रह (प्रकाशक ए०एम० कम्पनी) और जैन विविधढाल संग्रह में प्रकाशित है । एक 'दशवैकालिक चूलिकागीत' भी प्राप्त है । शायद यह चतुर्विध संघ नाममाला के साथ जोड़ा गया गीत है ।
अमरसेन वयरसेन चौपाई २७७ कड़ी सं० १७०० (१७१७) दीपावली, जैसलमेर)
आदि - जिनमुषकमल विलासिनी, समरु सरसति माय, अमर वयर चरित का दान पूजा दीपाय ।
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रचनाकाल - संवत सतरइ देवाली दिनइ रे, जेसलमीर मझार । श्री जिनरत्नसूरि विजयराजइ रे, श्री संघ जयकार |
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यह रचना दान के दृष्टान्त स्वरूप अमरसेन वयरसेन का चरित्र चित्रण करती है ।
कयवन्ना रास अथवा चौपाई (३१ ढाल ५६२ कड़ी सं० १७२१, बीकानेर)
आदि - स्वस्ति श्री सुख संपदा दायक अरिहंत देव, सेव करुं सूधे मने नाम जपुं नितमेव ।
रचनाकाल-(१७२१) संवत सतर से अकवीसें, बीकानेर सुजगीसे बे । इसमें कयवन्ना मुनि के दीर्घकालीन संयमपालन का वर्णन किया गया है ।
अंत - साधु गुण गाता हो हीयडो उलस्यें, त्रीसमी ढाल रसाल । बेकर जोडी हो जयरंग इम कहे, करु वंदना त्रिकाल | चारित्र पालो हो .... यह रचना सवाईचंद रायचंद अहमदाबाद और प्राचीन राससंग्रह भाग २ में प्रकाशित है | "
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दस श्रावक गीत - - इसके रचनाकाल का विवरण नहीं मिला । इसके आदि और अंत की कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं
आदि-वाणियगामी गाथापति रे, आणंद
सोह रे; सिवनंदा तस भारजा रे, सगुण सती मनमोहो रे ।
१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई -- जैन गुर्जर कविओ भाग ४ पृ० २७-३३न० सं०
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