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________________ जगतापी-तापीदास अंत-'छि गुज्जर खंड मांहि वास, भृगुकच्छ ओ नर्बदानि पास । जनतापी कहि बोल्यु जेह, हरि समर्पण कीर्छ तेह । कवि भरुच का बन्धारा था; उसने लिखा है -- कविता कुल बंधारा मांहि, हरि आधारे बाल्यो ताहि ।' इसका रचनाकाल शंकास्पद है क्योंकि इसका निम्न पाठ अस्पष्ट है --- शाके पनर चोदोत्तरे (चुमोतरे) सीधु, अश्वन मास संपूरण कीर्छ । इससे शकसंवत् १५१४, १५३४ दोनों का भ्रम होता है। इसलिए तिथि अस्पष्ट है। जयचंद ये कीर्तिरत्न सूरि शाखान्तर्गत विजयरंग के शिष्य थे । इन्होंने कवित्त बावनी सं० १७३० सेरुणा, सवैया बावनी सं० १७६३, ऋषभदेव स्तवन, नवकार बत्तीसी सं० १७६५ बीलावास के अतिरिक्त कई स्तवन, संज्झाय और गीत आदि लिखे हैं । इसी समय जयचंद नामक दो विद्वानों के अस्तित्व का पता लगता है जिनमें से एक ने 'माता जी की वचनिका' नामक गद्यरचना सं. १७७६ कुचेरा में की थी। यह रचना राजस्थानी शोध संस्थान से प्रकाशित परंपरा में छपी है। दूसरे जयचंद विनयरंग के शिष्य और बावनी, बत्तीसी आदि के लेखक हैं। वचनिका वाले जयचंद मूलतः गद्यकार प्रतीत होते हैं पर इनकी वंचनिका से कोई उद्धरण नमूने के रूप में नहीं प्राप्त हो सका अतः इनकी रचना-क्षमता का अनुमान संभव नहीं है किन्तु विनयरंग शिष्य जयचंद की इतनी कृतियां उपलब्ध हैं जिनसे उनके सशक्त रचनाकार होने का अनुमान पुष्ट होता है। जयकृष्ण - आपकी रचना 'रूपदीप पिंगल' ( सं० १७७६ भाद्र शुक्ल २) का आदि निम्नांकित है-- १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गृर्जर कविओ भाग ३ पृ० २१७ ३ प्र०सं० २ अगरचन्द नाहटा--परंपरा पृ० ११० ३. सम्पादक अगरचन्द नाहटा-... राजस्थान का जैन साहित्य पृ० २३२ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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