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________________ १३२ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास जैन पदावली के अलावा उनका एक पदसंग्रह भी प्राप्त है। उसमें उन्होंने अपना नाम राय जगराम लिखा है-- त्रिभवनपति जगराम प्रभ, अब सेवक को द्यौ सेवा पद परसन की। या, जो जगराम बने सुमरन तो अनहद बाजा बाजे। इनकी एक लघुकृति ‘लघुमंगल' नाम से ज्ञात है जिसमें मात्र १३ पद्य हैं। इसमें तीर्थंकर के जन्म कल्याणक का वर्णन किया गया है। एक उदाहरण-- सुरपति निंद्र पठाइयो, नगर रच्यो विस्तारो जी, नौ बारा जोजन तणों, कनक रतन मई सारो जी।' इसमें तीर्थंकर की माँ के गर्भवती होने पर इन्द्र ने नगर की नई रचना के लिए कुबेर को आदेश दिया है कि वह विस्तृत नगर पूर्णतया कनक और रत्नजटित हो । जगतराम ने अपनी लगन, स्वाध्याय और अध्यवसाय से पांडित्य और पद-प्रतिष्ठा प्राप्त की थी। यदि उन्होंने केवल प्राचीन कृतियों का भाषान्तर ही किया होता तो भी अपनी विद्वत्ता से प्रभावित कर जाते पर उन्होंने तो शास्त्रीय ग्रन्थ, मौलिक पद आदि अनेक प्रकार की रचनाएँ करके अपने वैशिष्ट्य की छाप छोड़ी है। जगन--ये लोकागच्छ के ऋषि सेखा के शिष्य थे। इन्होंने सं० १७६१ में 'सुकोशल चौपई' की रचना की। संभवतः इनका पूरा नाम जगन्नाथ था। इनकी स्वलिखित हस्तप्रत प्राप्त है। एक जगन्नाथ कवि ने संस्कृत में सुखनिधान की रचना की थी जिसकी पं० दामोदर ने प्रतिलिपि सं० १७१४ फाल्गुन सुदी १० मौजाबाद या मोजमाबाद के आदीश्वर चैत्यालय में लिखी थी। पर यह रचना सं० १७०० की है अतः इस जगन्नाथ तथा सुकोशल चौपई के कर्ता जगन्नाथ या जगन के एक होने की संभावना बड़ी क्षीण है। जगजीवन-आगरे के प्रसिद्ध धनिक श्रेष्ठि संघवी अभयराज आपके पिता थे। वे धनवान के साथ दानी और दयावान भी थे। १. डॉ० प्रेमसागर जैन-हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि पृ० २५१-५८ । २. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो भाग ३ पृ० १४०६(प्र०सं०) भाग ५ पृ० २१४ (न० सं०) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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