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________________ १३० मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास .....श्रावण सुदि पूनिम सु रविवार अर्थ रस जानि । मद ससि संवत्सर विषै भयौ ग्रंथ सुख खानि । . पाठकों से कवि ने निवेदन किया है कि इसके गुण ग्रहण करें, कृपया दुर्गुणों का त्याग कर दें, क्योंकि ---- __सन्त सदा गुन ही ग्रहैं, दुर्जन औगुण लेय । सुख तै तिष्ठौ भूमि परि मो पर कृपा करेय । इसकी अन्तिम पंक्तियाँ निम्नांकित हैं---- चर थिर चवगति जीवत निति होहं सुखी जग थान । टरो विघन दुष रोष सब वधौ धर्म भगवान ।' जगतराम (जगतराय)--इनके पितामह भाईदास सिंघल गोत्रीय अग्रवाल थे और गहाना के निवासी थे। उनके दो पुत्र थे, रामचन्द्र और नन्दलाल । ये लोग वहाँ से आकर पानीपत में रहने लगे थे। कवि काशीदास और अगरचन्द नाहटा ने जगतराम को रामचन्द्र का पुत्र बताया है किन्तु पद्मनन्दि कृत 'पंचविंशतिका' की प्रशस्ति में इन्हें नन्दलाल का पुत्र कहा गया है। जो हो जगतराम आगरा आ गये थे और मुगल दरबार में किसी अच्छे पद पर प्रतिष्ठित थे। लोग उन्हें जगतराम की जगह जगतराय कहने लगे थे। काशीदास इनके आश्रित कवि थे। सम्यक्त्व कौमुदी में जगतराम का परिचय दिया है- सहर गुहाणावासी जोइ, पाणीपंथ आइ है सोय । रामचन्द्र सुत जगत अनूप, जगतराय गुणग्राहक भूप। ___ नाथूराम प्रेमी ने इनकी छन्दोबद्ध रजनाओं में आगमविलास, सम्यक्त्व कौमुदी भाषा और पद्मनन्दि पंचविंशतिका का उल्लेख किया है। छन्दरत्नावली और ज्ञानानंद श्रावकाचार का रचयिता भी इन्हें बताया जाता है। सम्भवतः श्रावकाचार गद्यग्रंथ है। आगमविकास एक संग्रह पद्यबद्ध कृति है । यह संग्रह सं० १७८४ में मैनपुरी में किया गया था। यह संग्रह जगतराय को द्यानतराय के पुत्र लालजी से प्राप्त हुआ बताया जाता है। सम्यक्त्वकौमुदी का रचयिता इनके आश्रित कवि काशीदास को कहा जाता है, लेकिन इसकी प्रशस्ति के अन्त में १. सम्पादक डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल और श्री अनूपचन्द-- राजस्थान के जैन शास्त्र भंडारों की ग्रन्थ सूची भाग ३ पृ० २१४-१६ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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