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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
खेडिया जगा-जगोजी - आपकी वचनिका ' राठोड रतन महेश दासोतरी वचनिका (सं० १७१५) चारणी शैली की रचना है। इसकी भाषा का नमूना देखिए
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गणपति गुणे गहिरं, गुण ग्राहक दान गुण देयणें, सिद्धि रिद्धि बुधि सधीरं, सुडालादेव सुप्रसन्नं ।
इसमें सुडालादेव (गणेश) की वन्दना है । कवि जैनेतर राजस्थानी चारण है । इसकी अन्तिम पंक्तियां निम्नांकित हैं
पप वैसाह तिथि नवमः पनतोत्तरं वरस, वार शुक्रलडीआ वदह : हींदू तुरुक बहस । जोड़े भणौ खिडीय जगो रासो रतनरसाल । सुरा पुरां सांभलोः भट मोटा भूपाल । दलीराउ बांका: उजैणी रा सका, च्यारजुग रहसी कवी बात कहसी ।'
यद्यपि कवि चारण है किन्तु वचनिका के प्रतिलिपिकर्त्ता तथा सुरक्षाकर्त्ता जैन साधु एवं जैनशास्त्र भण्डार हैं । हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्येहासकार मिश्रबन्धुओं ने इनका उल्लेख गद्य लेखकों में किया है।
खेतल--- खेताक अथवा खेता - आप खरतरगच्छ के यति थे और जिनराजसूरि के शिष्य दयावल्लभ के शिष्य थे । इन्होंने सं० १७४३ दहखास में बावनी ( ६४ पद्य), सं० १७४८ में जिनचन्द्र सूरि छन्द, सं० १७४८ में चित्तौड़ गजल और सं० १७५८ में उदयपुर गजल नामक रचनायें की । गजलों की भाषा खड़ी बोली है। खड़ी बोली के प्राचीन पद्य प्रयोग और गजल विधा के हिन्दी में प्रयोग की दृष्टि से इन गजलों का ऐतिहासिक महत्व है । इसके अतिरिक्त इनमें उक्त दोनों स्थानों की भौगोलिक, प्राकृतिक एवं ऐतिहासिक सूचनाएँ भी उपलब्ध हैं । अन्य रचनायें मरुगुर्जर भाषा में है । गजलों का परिचय आगे दिया जा रहा है
१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई -- जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० २१७५ । २. मिश्रबन्धु -- मिश्रबन्धु विनोद पृ० ४६१ (प्र० सं० ) ।
३. अगरचन्द नाहटा -- परंपरा पृ० १०८ ।
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