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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास जैन पुराणों पर आधारित हैं और प्राय. सांगानेर में ही रचित हैं। हरिवंश पुराण १७८०, यशोधर चरित्र १७८१, पद्मपुराण १७८३, व्रत कथा कोष १७८७, जंब स्वामी चरित, उत्तरपुराण १७९९, सद्भाषितावली १७७३, धन्यकुमार चरित, वर्तमानपुराण, शांतिनाथपुराण
और चौबीस महाराज पूजा' आदि आपकी उल्लेखनीय कृतियाँ हैं । ये सभी भाषाप्रयोग एवं काव्यकला की दृष्टि से पठनीय हैं।
डॉ० प्रेमसागर जैन ने इनका जन्मस्थान सांगानेर बताया है और इनकी माता का नाम सुजानदे के स्थान पर अभिधा बताया है और अपने इस कथन का आधार व्रतकथाकोश, प्रशस्ति को बताया है। इसमें १६ कथाएँ हैं, अक्षयनिधि व्रतकथा, षोडशकारणव्रतकथा, मेघ. माला व्रतकथा, ज्येष्ठ जिनवर व्रतकथा, आदित्यवार व्रतकथा, सप्तपरमस्थान ब्रतकथा, मुकूट सप्तमी व्रतकथा, सुगंधदससी व्रतकथा, लब्धिमुक्तावली व्रतकथा इत्यादि । इसका रचनाकाल -- सं० १७८७ के बदले सं० १७८३ बताया है । ' संदर्भित पद्य यह है---.
और सुणौ आगे मन लाय, मैं सुंदर को नंद सुभाय;
सिंहतिया अभिधा मम माय, ताहि कूरिवंभै उपजू आय । १ लगता है कि सिंहतिया पाठ अशुद्ध है वह सुजान ही है क्योंकि अभिधा शब्द तो नाम का पर्याय ही है, यह नाम न होगा। यह निश्चित है कि वे दिल्ली (जहानाबाद) के जयसिंहपुर नामक मुहल्ले में रहते थे पर जन्मस्थान के संबंध में कुछ भी निश्चय पूर्वक नहीं ज्ञात हो सका है। उत्तरपुराण की प्रशस्ति में कवि के परिचय से भी यह स्पष्ट नहीं हैं। इनकी रचनाएँ काव्यत्व की दृष्टि से पठनीय और मार्मिक हैं यथा-तुम प्रभु अधम अनेक उधारे, ढील कहा हम वारो जी।
तारन तरन विरुद सुन आयो और न तारण हारो, तुम बिन जनस मरण दुख पायौ कभी न आवै पारो जी।
१. सम्पादक अगरचन्द नाहटा इत्यादि राजस्थान का जैन साहित्य पृ०
२२०-२१ पर प्रकाशित लेख -- राजस्थानी पद्य साहित्यकार-६ लेखपाल
डॉ. गंगाराम गर्ग । २. सम्पादक-कस्तूरचन्द कासलीवाल- राजस्थान के शास्त्र भण्डारों की सूची
भाग ३ पृ० ८५ । ३. सम्पादक कस्तूरचन्द कासलीवाल---प्रशस्ति संग्रह पृ० २५७ (हिन्दी जैन
भक्तिकाव्य पृ० ३३४ पर उद्धत )
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