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________________ १०६ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कवि ने रचना-स्थान इस प्रकार कहा है - एही लाभपुर नगर में श्रावक परम सुजाण । सब मिलि कै चरचा करें, जाको जो उनमान । षड्गसेन तिनमैं रहै, सबकी सेवा लीन । जिन वाणी हिरदै बसै, ज्ञान मगन रस चीन ।' कवि ने अपना नाम षड्गसेन लिखा है। इस तरह इनके षड्गसेन, खरगसेन और खंगसेन तीन नाम मिलते हैं पर इन तीन नामों में व्यक्ति एक ही है जिसने त्रिलोक दर्पण की रचना की थी। चतुर्भज का उल्लेख नाटक समयसार में भी हुआ है। ये कविवर बनारसीदास की अध्यात्म मंडली के एक सदस्य थे। इनका जन्म स्थान नारनौल (बागड देश) था। इनके पिता का नाम लूणराज और दादा का नाम मानसाह था। इनकी शिक्षा आगरा में सम्भवतः चतुर्भुज वैरागी के सान्निध्य में ही हुई थी। इन्होंने शाहजहाँ के शासनकाल में अपनी रचना त्रिलोक दर्पण का निर्माण किया था। यह दोहा चौपाई में पद्यबद्ध कृति है। इसके अन्त में कवि का परिचय दिया गया है जिसके आधार पर उपरोक्त सूचनायें प्राप्त हुई हैं। खीममनि-ये कानमुनि के शिष्य थे। इन्होंने 'पंचमहाव्रत संझाय' (पाँच ढाल) की रचना की है जिसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है --- सकल मनोरथ पूरवे रे, संखेसरा जिनराय । तेह तणा सुपसाय थी रे, करुं पंचमहाव्रत संञ्झाय रे । मुनिजन से पहलूव्रतसार । अन्त--संयम रमणी सजो राता, तेहने अह भव परभव सुखशाता। पांचे व्रत नी भावना कही, ते आचारांग सूत्र थी लही। श्री कान मुनि उवझाय तणो, जग मांहि जस महिमा घणो । तेहनो शिष्य खिममुनिय कहे, अह संञ्झाय भणे ते सुखलहे । १. कामताप्रसाद जैन - हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास पृ० ११३ । २. सम्पादक अगरचन्द नाहटा, कस्तूरचन्द कासलीवाल, नरेन्द्र भानावत, मूलचन्द सेठिया और विनयसागर--राजस्थान का जैन साहित्य पृ० २११ प्राकृत भारती, जयपुर। ३. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १४३१-३२ प्र० सं० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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