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केसर
ढाल इग्यारमी जी कवि केसर कर जोड़, जे सुणस्ये भल भाव सुंजी ते घर संपति कोडि । '
केसर कुशल --- आप तपागच्छीय वीरकुशल के प्रशिष्य एवं सौभाग्य कुशल के शिष्य थे । आपकी प्रमुख रचना जगडु प्रबंध चौपाई अथवा रास ( २६ कड़ी, सं० १७६०, श्रावण, सांतलपुर में लिखी गई हैं । इसका मंगलाचरण इन पंक्तियों से प्रारंभ हुआ है
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पास जिणेसर पर नमी, प्रणमी श्री गुरु पाय । जगडूसा सुरला तणा, गुण गातां सुखथाय । राजा करण मरी करी पहोतो सरग मझार । कंचनदान प्रभाव थी, पग पग रहे मनोहार । मानव भवजो पामीओ, तो सही दीजे अन्न । देवलोक थी अवतर्यो, जगडूसा अर्थात् महादानी कर्ण ही जगडूसा के रूप में इस भव में
धनधन्न ।
अवतरा था ।
अंत--सतर नभ षट श्रावणमास अह संबंध कर्यो उल्लास । शांतलपुर चोमासुं रही, श्रावकजन ने आदरे कही । पंडित मोहे प्रवर प्रधान, वीर कुशल गुरु परम निधान । सौभाग्यकुशल सद्गुरु सुपसाय, तास शिष्य केसर गुणगाय इसमें जगडुसा के दान की कथा के साथ कई अन्य ऐतिहासिक प्रसंगों का भी यत्रतत्र उल्लेख है । मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने इसका रचनाकाल १७०६ लिखा था जो पाठ से भी लक्षित होता है परन्तु ठीक तिथि १७६० ही लगती है क्योंकि सौभाग्य कुशल का समय इसी के आसपास निश्चित होता है । यही अभिमत नवीन संस्करण (जैन गुर्जर कवियो ) के संपादक श्री जयन्त कोठारी का भी है ।
श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने इनकी दूसरी रचना 'बीसी' बताई है किन्तु इसमें गुरु परंपरा नहीं है इसलिए कुछ शंकास्पद १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई -- जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ५३३-३४ प्र० सं० और भाग ५ पृ० २९३ २९४ ( न० सं० ) ।
१५८ और १७४ ( प्र० सं०) तथा भाग ५ पृ० १९६
२. वही भाग २ पृ० १९७ न० सं० ।
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