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प्रकाशकीय
हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में जैन लेखकों का अवदान महत्त्वपूर्ण है। हिन्दी भाषा के आदिकाल से लेकर वर्तमान युग तक जैन मुनि एवं लेखक हिन्दी साहित्य के भण्डार को समृद्ध करते रहे हैं । जैन साहित्य के बृहद् इतिहास की निर्माण योजना के अन्तर्गत पूर्व में हमने प्राकृत और संस्कृत जैन साहित्य से सम्बन्धित छ: भाग प्रकाशित किये । इसी प्रकार तमिल, मराठी और कन्नड़ साहित्य का भी एक भाग उस योजना के ७ वें भाग के रूप में प्रकाशित किया गया है। अपभ्रंश साहित्य के इतिहास का लेखन कुछ व्यवधानों के कारण पूर्ण नहीं हो सका है। उस हेतु हम प्रयत्नशील भी हैं। क्योंकि हिन्दी जैन साहित्य विशाल है, अतः उसे स्वतन्त्र खण्डों में प्रकाशित किया जायेगा। हिन्दी जैन साहित्य के इतिहास की दृष्टि से हमने पूर्व में आदि काल से लेकर सोलहवीं शती (विक्रम) तक का लगभग ७०० पृष्ठों का प्रथम खण्ड प्रकाशित किया है। इसके लेखक हिन्दी के वरिष्ठ प्राध्यापक डा० शितिकंठ मिश्र हैं। प्रस्तुत कृति उसी योजना का अग्रिम चरण है। इसमें हमने सत्रहवीं शताब्दी विक्रम संवत १६०१-१७०० तक) के हिन्दी जैन कवियों और लेखकों को समाहित किया है।
प्रस्तुत खण्ड भी डा० शितिकंठ मिश्र द्वारा ही तैयार किया गया है। उन्होंने मुख्य रूप से श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई और अगरचंद नाहटा की कृतियों को आधार बनाया है, किन्तु इसके अतिरिक्त भी डॉ० कस्तूरचंद कासलीवाल आदि की कृतियों से भी उन्हें जो सामग्री प्राप्त हो सकी, उसे इसमें समाहित करने का प्रयत्न किया है। जैन परम्परा से विशेष परिचित न होने पर भी उन्होंने हिन्दी जैन साहित्य के बृहद् इतिहास के खण्डों के लेखन का दायित्व स्वीकार किया है इसके लिए हम निश्चय ही डॉ० शितिकंठ मिश्र के आभारी हैं।
सत्रहवीं शताब्दी (विक्रम संवत् १६०१ से १७०० तदनुसार ई० सन् १५४२ से १६४२) तक के जैन कवियों और लेखकों और उनकी कृतियों की संख्या इतनी अधिक है कि सीमित पृष्ठों में उसे समाहित
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