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मरु-गुर्जर की निरुक्ति
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आश्चर्य होता है कि इतने वीर और बुद्धिमान लोगों के देश भारत का इतना अधःपतन क्यों हो गया । लगता है कि इस युग में राजनीतिक अध:
तन के लिए देश की ह्रासोन्मुख बौद्धिक चेतना काफी हद तक जिम्मेदार है । शंकराचार्य इस युग के अन्तिम मौलिक चिन्तक व दार्शनिक हुए । आगे बहुत काल तक मौलिक चिन्तन व लेखन अवरुद्ध दिखाई पड़ता है, केवल वृत्तियों और भाष्यों का लेखन हो रहा था । टीकाओं, पद्धतियों और साहित्यशास्त्रीय लक्षण ग्रन्थों का पृष्ठपेषण होने लगा । राजा को ईश्वर का अवतार मान लिया गया और जनता अत्याचार सहते-सहते अभ्यस्त हो • गई, उसे ही अपना भाग्य मान लिया । जनता की अत्याचार के विरोध की शक्ति क्षीण पड़ने लगी । राजनीतिक अस्थिरता और बाहरी आक्रमणों के इस काल में स्वविवेकानुसार निर्णय लेने वालों और नेतृत्व करने वालों को संख्या अत्यन्त सीमित हो गई । परिणामतः सामाजिक विशृंखलन बढ़ा । धार्मिक गतिरोध, अन्ध विश्वास, रूढ़िवादिता बढ़ी । विभिन्न वर्णों में जातियों, उपजातियों, वर्णेतरों, अन्त्यजों और अस्पृश्यों की भीड़ बढ़ने लगी । देवी-देवताओं की चमत्कारिक शक्ति पर अन्धविश्वास और मन्दिरों की बढ़ती संपदा देश के विनास और लूटपाट का कारण बन गईं ।
राजनीतिक स्थिति - मध्यप्रदेश में गुर्जर प्रतीहार वंश और गाहड़वाल वंश का शासन क्रमशः ११वीं और १२वीं शताब्दी में मुसलमानों की विजय के बाद समाप्त हो गया । जेजाकभुक्ति के चंदेल और शाकंभरी के चाहमानों की भी यही गति हुई । यद्यपि पृथ्वीराज चौहान बड़ा वीर और प्रतापी था किन्तु मुहम्मद गोरी ने उसे अन्ततः पराजित किया और दिल्ली पर अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को शासक बनाकर बैठा दिया । इस प्रकार मध्यदेश और दिल्ली पर मुसलमानी शासन १२वीं शताब्दी में स्थापित हो गया । चंदेलों का अन्तिम राजा परमर्दिदेव भी पृथ्वीराज से और बाद में मुसलमानों से पराजित हुआ । इसका अतिशयोक्तिपूर्ण विवरण प्रसिद्ध ग्रन्थ परमालरासो या आल्हखंड में उल्लिखित है । इसी प्रकार पृथ्वीराज चौहान सम्बन्धी उल्लेख चन्दवरदायी कृत पृथ्वीराज रासो; जयचन्द सम्बन्धी विवरण जयचन्द - जस- चन्द्रिका आदि ग्रन्थों में उपलब्ध है ।
१. डॉ शितिकंठ मिश्र ' आदिकालीन हिन्दी सा० की पृष्ठभूमि' हि० सा० का
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बृ० इ० भाग ३ ( ना० प्र० सभा, काशी)
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