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जैन न्याय
इसीलिए क्रियासे युक्त
द्रव्यको ही कारक कहा वह तो वस्तु मात्र है, उसे कारक नहीं माना केवल वस्तु मात्रको नहीं अपनाते,
किन्तु जो इष्ट
गया है । जिसमें क्रिया जा सकता । फलार्थी पुरुष प्रयोजनका साधक होता है उसे ही अपनाते हैं । इसलिए जैसे रसोई पकाने के लिए चावल, पानी, आग और बटलोई इन कारकोंको, जो कि पहले से तैयार होते हैं, अपनाया जाता है और इनके मेलसे रसोई तैयार हो जाती है, वैसे ही आत्मा, इन्द्रिय, मन और पदार्थ इन चारोंका मेल होनेपर ज्ञाताका व्यापार होता है । और वह ज्ञाताका व्यापार पदार्थका ज्ञान कराने में कारण होता है । अतः ज्ञाताका व्यापार ही प्रमाण है, क्योंकि पदार्थका ज्ञान कराने रूप फलको उत्पन्न करने में वही साधकतम है । जो प्रमाण नहीं होता वह साधकतम भी नहीं होता, जैसे सन्निकर्ष वगैरह । किन्तु ज्ञातृव्यापार साधकतम है । अतः वही प्रमाण है ।'
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है जब उसमें क्रिया होती है;
नहीं,
उत्तरपक्ष - जिसकी सत्ता किसी प्रमाणसे सिद्ध होती है, वही प्रमाण हो सकता है । ज्ञातृव्यापारकी सत्ता प्रत्यक्ष, अनुमान आदि किसी भी प्रमाणसे सिद्ध नहीं है । अतः वह प्रमाण नहीं हो सकता ।
यदि ज्ञात व्यापार प्रत्यक्ष से सिद्ध है, तो किस प्रत्यक्ष से सिद्ध है - इन्द्रिय और पदार्थ के सन्निकर्षसे होनेवाले प्रत्यक्षसे, आत्मा और मनके सन्निकर्षसे होनेवाले प्रत्यक्ष से अथवा स्वसंवेदन प्रत्यक्षसे ? पहला पक्ष ठीक नहीं; क्योंकि इन्द्रियाँ उसी पदार्थका ज्ञान कराती हैं, जो उनसे सम्बद्ध होता है तथा उनके ग्रहण करने के योग्य होता है। न तो ज्ञातृव्यापार के साथ इन्द्रियोंका सम्बन्ध ही होता है और न अत्यन्त परोक्ष होने के कारण वह इन्द्रियोंके द्वारा ग्रहण किये जानेके ही योग्य है । इन्द्रियाँ तो रूप रस आदि अपने नियत विषयोंको ही जान सकती हैं, वे ज्ञातृव्यापारको क्या जानें। इसीसे दूसरा पक्ष भी ठीक नहीं ठहरता; क्योंकि जो वस्तु ग्रहण किये जानेके अयोग्य है, उसमें आत्मा और मनके सन्निकर्षसे उत्पन्न होनेवाला प्रत्यक्ष कैसे प्रवृत्ति कर सकता है । वह तो अपने योग्य सुख आदिको ही जान सकता है । तीसरा पक्ष भी ठीक नहीं है; क्योंकि मीमांसक स्वसंवेदन प्रत्यक्ष नहीं मानते। साथ ही अत्यन्त परोक्ष वस्तुका स्वसंवेदन हो भी नहीं सकता । अतः प्रत्यक्ष प्रमाणसे ज्ञातृव्यापारकी सत्ता सिद्ध नहीं होती ।
१. मीमांसा श्लो० पृ० १५१; शास्त्रदी० पृ० २०२ ।
२. न्या० कु०, पृ० ४२-४५, प्रमेयक० मा०, पृ० २०-२५ ।
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