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________________ परिशिष्ट ४ विषयानुक्रम अकलंक २६ अर्थ ज्ञानका कारण नहीं १२५ अकलंकदेवके उत्तरकालीन जैन नैया. अर्थापत्तिका अनुमानमें अन्तर्भाव २२६ यिक ३५ अर्थापत्ति प्रमाणके सम्बन्धमें मीमांसकअकलंकदेवके द्वारा प्रमाणविषयक का मत २२४ ।। गुत्थियोंका सुलझाव ११२ अर्थावग्रह १३२ अकलंकदेवके पूर्व जैन न्यायको स्थिति ६ अलौकिकार्थख्याति ८३ अख्यातिवाद ७९ अवग्रह और दर्शन १४४ अनन्तकीर्ति ३८ अवग्रहके सम्बन्धमें धवलाका मत १३३ अनन्तवीर्य ३७ अवग्रहके सम्बन्धमें श्वेताम्बर मा. अनिर्वचनीयार्थख्याति ८२ न्यता १३४ अनिसृतज्ञान और अनुमानादि १५७ । अवधिज्ञान १६० अनुमानके अवयव २२९ अवधिज्ञानके भेदोंका विवेचन १६१ अनुमानके अवयवोंके विषयमें बौद्ध अविनाभावके भेद २१६ मत २२९ असख्यातिवाद ७९ अनुमानप्रमाण २१२ आगम या श्रुतप्रमाण २३२ अनुमानके भेद २३२ आस्मख्यातिवाद ८१ अनुमानमें अर्थापत्तिका अन्तर्भाव ११८ ईहा आदिका स्वरूप १५३ अनेकान्तमें सप्तभंगी ३२६ इन्द्रियके भेद १२३ अन्यथानुपपत्ति या अविनाभाव नियम इन्द्रियोंके आहंकारिकत्वको समीक्षा १२४ हो हेतुका सम्यक् लक्षण २१६ इन्द्रियके सम्बन्ध में नैयायिकका मत १२३ अन्यापोहवादकी समीक्षा २४३ इन्द्रियवृत्ति समीक्षा ६० अपभ्रंश प्राकृत आदिके शब्द भी अर्थके ईश्वरवाद समीक्षा १७७ वाचक २७३ 'अपर्व पद'के सम्बन्धमें जैन नैयायिकोंमें उपमान प्रमाणके सम्बन्धमें नैयायिकका मतभेद ४७ मत २०४ . अभयदेव ४२ . उपमानप्रमाणके सम्बन्धमें मीमांसकका अभावप्रमाणका अन्तर्भाव ११९ मत २०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002089
Book TitleJain Nyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, & Epistemology
File Size16 MB
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