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१० : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन
ग्रन्थ रचना की । संस्कृत, प्राकृत और राजस्थानी भाषा पर इनका समान अधिकार था । गुजरात और बागड़ आदि क्षेत्रों में जैनधर्म का काफी प्रचार प्रसार भी इन्होंने किया ।
आचार्य सकलकीर्ति की संस्कृत और राजस्थानी भाषा में निम्नलिखित रचनाएँ प्राप्त होती हैं
संस्कृत भाषा में रचित साहित्य - मूलाचार प्रदीप, प्रश्नोत्तरोपासकाचार, आदिपुराण, उत्तर पुराण, शान्तिनाथ चरित्र, वर्द्धमान चरित्र, मल्लिनाथ चरित्र यशोधर चरित्र, धन्यकुमार चरित्र, सुकुमाल चरित्र, सुदर्शन चरित्र, सद्भाषितावली, पार्श्वनाथ चरित्र, व्रतकथा कोष, नेमिजिन चरित्र, कर्मविपाक, तत्त्वार्थसारदीपक, सिद्धान्तसारदीपक, आगमसार, परमात्मराज स्तोत्र, सारचतुर्विंशतिका, श्रीपाल चरित्र, जम्बूस्वामी चरित्र, द्वादशानुप्रेक्षा । पूजाग्रन्थ - अष्टान्हिका पूजा, सोलहकारण पूजा, गणधर वलय पूजा | राजस्थानी कृतियाँ - आराधना प्रतिबोधसार, नेमीश्वर गीत, मुक्तावलि गीत, णमोकारफल गीत, सोलहकारण रास, सारसिखामणि रास, शांतिनाथ फागु ।
आचार्य सकलकीर्ति ने अपने मूलाचार प्रदीप में प्रायः उन सभी विषयों का विस्तृत वर्णन किया है, जिनका प्रतिपादन आचार्य वट्टकेर ने अपने मूलाचार में किया। मूलाचार के आधार पर लिखे जाने पर भी आचार्य सकलकीर्ति का तीन हजार से भी अधिक संस्कृत पद्यों से युक्त यह ग्रन्थ स्वतन्त्र कृति जैसा लगता है । इसमें कहा है कि मैं ( आचार्य सकलकीर्ति) इष्ट देवों को नमन करके, शुभ और श्रेष्ठ अर्थों को जानकर मूलाचार आदि श्रेष्ठ ग्रन्थों में कहे हुए आचारों में प्रवृत्ति हेतु तथा स्वयं का और मुनियों का हित करने के लिए शुद्धाचार स्वरूप का प्ररूपक मूलाचार प्रदीप नामक महाग्रन्थ की रचना करता हूँ ।"
मूलाचार प्रदीप बारह अधिकारों में विभक्त है, इनका विषय परिचय इस प्रकार है
प्रथम अधिकार में मूलगुणों का स्वरूप, भेद तथा पाँच महाव्रतों का स्वरूप । द्वितीय अधिकार में पांच समितियों का विवेचन किया गया है ।
१. इष्टदेवान् प्रणम्येति विज्ञायार्थान् परान् शुभान् । मूलाचारादि सद्ग्रंथानामाचार प्रवर्तये || महाग्रंथं करिष्येऽहं श्री मूलाचार दीपकम् ।
हिताय मे यतिनां च शुद्धाचारार्थदेशकम् ॥ - मूलाचार प्रदीप १।३७, ३८
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