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जैन सिद्धान्तः ४९५. द्वारा ग्रहण किये हुए पुद्गलों की शक्ति विशेष है। इन दोनों में कारण-कार्य का भेद है । पर्याप्ति कारण है और प्राण उसके कार्य हैं । पाँच इन्द्रिय प्राण का कारण इन्द्रिय पर्याप्ति है। मनोबल, वचनबल तथा कायबल का कारण क्रमशः मनःपर्याप्ति, भाषा पर्याप्ति और शरीरपर्याप्ति हैं । श्वासोच्छ्वास प्राण का कारण श्वासोच्छ्वास-पर्याप्ति तथा आयुष्य-(भवधारण) प्राण का कारण आहार पर्याप्ति है, क्योंकि आहार पर्याप्ति के आधार पर ही आयुष्य प्राण ठहर सकता है। आयु :
एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के जीवों की आयु निम्नानुसार है :
मार्गणा
विशेष
आयु उत्कृष्ट आयु
जघन्य आयु.
एकेन्द्रिय पृथ्वीकायिक
बारह हजार वर्ष
मृत्तिकादि रूप शुद्ध पृथ्वीकाय. पाषाणादिरूप खर पृथ्वीकाय.
बाईस हजार वर्ष
सात हजार वर्ष तीन दिनरात तीन हजार वर्ष दस हजार वर्ष
सर्वत्र अन्तर्मुहूर्त
अप्कायिक अग्निकायिक वायुकायिक वनस्पति साधारण विकलेन्द्रिय द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय पंचेन्द्रिय जलचर परिसर्ग उरग पक्षी चौपाये असंज्ञी पंचेन्द्रिय
बारह वर्ष उन्चास दिनरात छह महीने
मत्स्यादि गोह, नेवला, सरीसृपादि सर्प कर्मभूमिज भैरुण्ड आदि कर्मभूमिज पशु कर्मभूमिज
एक कोटि पूर्व वर्ष नौ पूर्वांग बयालीस हजार वर्ष बहत्तर हजार वर्ष एक पल्य एक कोटि पूर्व वर्ष
१. मूलाचार १२।६४-७०.
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