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जैन सिद्धान्त : ४९३
जीवों के कुल-समस्त जीवों के निम्नलिखित कुल हैं ।'
(१) एकेन्द्रिय जीवों में कुलों की संख्या : पृथ्वीकायिक जीवों की २२ लाख कोटि (करोड़), अप्कायिक जीवों की सात लाख कोटि, तेजस्कायिक जीवों की ३ लाख कोटि, वायुकायिक जीवों में ७ लाख कोटि तथा वनस्पतिकायिक जीवों की २८ लाख कोटि कुलों की संख्या होती है । , (२) विकलत्रय जोवों में कुलों की संख्या : द्वीन्द्रिय जीवों की ७ लाख कोटि. तीन इन्द्रिय जीवों को ८ लाख कोटि तथा चतुरिन्द्रिय जीवों की ९ लाख कोटि कुलों की संख्या होती है । ..(३) पंचेन्द्रिय जोवों में कुलों को संख्या : पंचेन्द्रिय जलचर जीवों की साढ़े तेरह लाख कोटि, खेचर पक्षियों की १२. लाख कोटि, स्थलचर सिंह, व्याघ्रादि चौपाये जीवों की १० लाख कोटि, छाती के बल पर चलने वाले सादि जीवों के कुलों की संख्या ९ लाख कोटि है। देवों की कुल संख्या २६ लाख कोटि, नारकियों की २५ लाख कोटि तथा मनुष्यों के कुलों की संख्या १४ लाख कोटि है । इस प्रकार सभी प्रकार के जीवों के कुलों की कुल संख्या १९९३ लाख कोटि है।
'प्राण :
जीवन शक्ति को प्राण कहते हैं । जिस जीवन शक्ति के संयोग से जीव जीवन प्राप्त करता है और वियोग से मरण दशा को प्राप्त करता है वह शक्ति विशेष प्राण है।
प्राण के भेद : द्रव्य और भाव के भेद से प्राण के दो भेद हैं। आभ्यन्तर में उस-उस इन्द्रियावरण कर्मों के क्षयोपशम से जो ज्ञानादि गुण प्रकट हों उन्हें भाव प्राण कहते हैं तथा उनके कार्यरूप उन-उन इन्द्रियों के आकार आदि द्रव्य प्राण हैं। ___ इन्द्रिय, बल, आयु और श्वासोच्छ्वास सामान्य रूप में ये प्राणों के चार भेद है । पाँच इन्द्रियप्राण; मनोबल, वचनबल और कायबल-ये तीन बलप्राण तथा श्वासोच्छ्वास और भवधारण (आयुष्य) ये दो आयुप्राण-इस प्रकार दस
१. मूलाचार ५१२४.२७. २.. वही, ५।२८.
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